क्या लॉकडाउन बढ़ेगा?
लॉकडाउन बढ़ सकता है। केंद्र सरकार इस बात पर विचार कर रही है। सूत्रों के हवाले से ख़बर आ रही है की कई राज्य सरकार और हेल्थ एक्स्पर्ट्स केंद्र सरकार से इस बात का आग्रह कर रहे हैं कि लॉकडाउन को बढ़ा दिया जाए और केंद्र सरकार इस बात पर विचार कर रही है।
सबसे ज़्यादा केस जिन सात राज्यों में हुए हैं वे राज्य पहले ही कह चुके हैं की 21 तारीख़ को लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद भी वे अपने राज्यों में लोगों के बाहर निकलने पर पाबंदी बनाए रखेंगे। इन सात राज्यों में कोरोना वायरस के एक तिहाई मामले मिले हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव कह चुके हैं कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए वे लॉकडाउन को बढ़ाना चाहते हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने कह दिया है कि वे पूरी तरह से लॉकडाउन समाप्त नहीं करना चाहते। एक अच्छी ख़बर ये है कि पहली बार कोरोना के मामलों में कुछ कमी दिखाई दी है लेकिन इसके फैलने का ख़तरा अभी टला नहीं है। सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख कर पाँच सुझाव दिए हैं जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया में विज्ञापन ना देकर सरकार अपने ख़र्चे कम करे। हज़ारों करोड़ के बड़े-बड़े इन्फ़्रस्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का पैसा सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इस्तेमाल करे। एक्सपेंडिचर बजट में 30 फीसदी की कटौती करके हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपया दिहाड़ी मज़दूरों और किसानों की आर्थिक सहायता के लिए अलग रखें। विदेश यात्राओं को रोकें और PM CARES FUND को PM NRF यानी नैशनल रिलीफ फंड में ट्रांस्फर करे ताकि पैसा कहाँ ख़र्च हो रहा है इसकी पारदर्शिता बनी रहे। इसमें ज़्यादा ज़ोर ग़रीब आदमी के खाने पर दिया जाए। इस लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा ग़रीब पिस रहा है। इस देश में आज भी ग़रीबी रेखा के नीचे रहने रहने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। आज भी लगभग 37 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। इन लोगों तक समय पर राशन नहीं पहुँचा तो भुखमरी जैसे हालात हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में मुसहर बस्ती के लोग खेतों से कच्चे गेहूं के पौधे उखाड़ कर उसे भून कर खा रहे हैं। काम समाप्त हो गया है। सरकार ने 1.7 लाख करोड़ के जिस पैकेज की घोषणा की थी उसका पैसा अभी उन तक पहुँचा नहीं है। पैसा क्या अनाज या राशन भी नहीं पहुँच पा रहा है। 90 फ़ीसदी मज़दूरों का काम छूट गया है। जो घर लौट गए उनके पास भी अब पैसे नहीं हैं। जिनके पास पैसे हैं वे एक सप्ताह तक और खा सकते हैं उसके बाद उनके पास पैसे नहीं बचेंगे। लॉकडाउन बढ़ा तो काम मिलने की बाक़ी उम्मीद भी ख़त्म हो जाएगी। ख़बरें आ रही हैं कि राज्यों की सीमा सील होने के कारण कई जगह हज़ारों मज़दूर दर बदर भटक रहे हैं। खेतों में काम करने वाले मज़दूरों का और बुरा हाल है। भारत की जीडीपी में एग्रिकल्चर सेक्टर की 16 फ़ीसदी भागीदारी है। चावल, गेहूँ, गन्ना, कॉटन, सब्ज़ी और दूध के मामले में भारत दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। विशेषज्ञों का मानना है कि खेती का काम ठप्प हो जाने से सिर्फ़ किसानों को ही नहीं बल्कि फ़ूड सिक्योरिटी को भी झटका लग सकता है। सरकार के सामने चुनौती ये है कि जल्दी से जल्दी घरों तक राशन पहुँचाएं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव कह चुके हैं कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए वे लॉकडाउन को बढ़ाना चाहते हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने कह दिया है कि वे पूरी तरह से लॉकडाउन समाप्त नहीं करना चाहते। एक अच्छी ख़बर ये है कि पहली बार कोरोना के मामलों में कुछ कमी दिखाई दी है लेकिन इसके फैलने का ख़तरा अभी टला नहीं है। सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख कर पाँच सुझाव दिए हैं जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया में विज्ञापन ना देकर सरकार अपने ख़र्चे कम करे। हज़ारों करोड़ के बड़े-बड़े इन्फ़्रस्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का पैसा सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इस्तेमाल करे। एक्सपेंडिचर बजट में 30 फीसदी की कटौती करके हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपया दिहाड़ी मज़दूरों और किसानों की आर्थिक सहायता के लिए अलग रखें। विदेश यात्राओं को रोकें और PM CARES FUND को PM NRF यानी नैशनल रिलीफ फंड में ट्रांस्फर करे ताकि पैसा कहाँ ख़र्च हो रहा है इसकी पारदर्शिता बनी रहे। इसमें ज़्यादा ज़ोर ग़रीब आदमी के खाने पर दिया जाए। इस लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा ग़रीब पिस रहा है। इस देश में आज भी ग़रीबी रेखा के नीचे रहने रहने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। आज भी लगभग 37 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। इन लोगों तक समय पर राशन नहीं पहुँचा तो भुखमरी जैसे हालात हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में मुसहर बस्ती के लोग खेतों से कच्चे गेहूं के पौधे उखाड़ कर उसे भून कर खा रहे हैं। काम समाप्त हो गया है। सरकार ने 1.7 लाख करोड़ के जिस पैकेज की घोषणा की थी उसका पैसा अभी उन तक पहुँचा नहीं है। पैसा क्या अनाज या राशन भी नहीं पहुँच पा रहा है। 90 फ़ीसदी मज़दूरों का काम छूट गया है। जो घर लौट गए उनके पास भी अब पैसे नहीं हैं। जिनके पास पैसे हैं वे एक सप्ताह तक और खा सकते हैं उसके बाद उनके पास पैसे नहीं बचेंगे। लॉकडाउन बढ़ा तो काम मिलने की बाक़ी उम्मीद भी ख़त्म हो जाएगी। ख़बरें आ रही हैं कि राज्यों की सीमा सील होने के कारण कई जगह हज़ारों मज़दूर दर बदर भटक रहे हैं। खेतों में काम करने वाले मज़दूरों का और बुरा हाल है। भारत की जीडीपी में एग्रिकल्चर सेक्टर की 16 फ़ीसदी भागीदारी है। चावल, गेहूँ, गन्ना, कॉटन, सब्ज़ी और दूध के मामले में भारत दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। विशेषज्ञों का मानना है कि खेती का काम ठप्प हो जाने से सिर्फ़ किसानों को ही नहीं बल्कि फ़ूड सिक्योरिटी को भी झटका लग सकता है। सरकार के सामने चुनौती ये है कि जल्दी से जल्दी घरों तक राशन पहुँचाएं।
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