क्या नई नीति ठेके पर चल रही शिक्षा व्यवस्था में जान फूंक पाएगी?

by Rahul Gautam 3 years ago Views 2053

Will the new education policy revive the contractu
केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंज़ूरी दे दी है. इसका ऐलान करते हुए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि नई नीति से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होगा. नई नीति के तहत जीडीपी का छह फ़ीसद शिक्षा में लगाने का लक्ष्य रखा गया है जो अभी 4.43 फ़ीसद है. कहा जा रहा है कि नई नीति लागू होने के बाद शिक्षकों को ठेके पर रखने का चलन और बढ़ेगा और स्थायी टीचरों की भर्ती सुस्त हो जाएगी.

हालांकि आंकड़े बताते हैं कि तक़रीबन दो दशक में शिक्षकों को ठेके पर रखने का चलन बहुत बढ़ गया है. कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि ठेके पर रखने वाले शिक्षकों का अनुपात 40 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं होना चाहिए लेकिन झारखंड और मेघालय जैसे राज्यों में यह 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है. दिल्ली विश्वविद्यालय में तो स्थायी और एडहॉक शिक्षकों का प्रतिशत 50-50 पर पहुंच गया है.


डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम ऑफ एजुकेशन 2015-16 के मुताबिक देश में करीब 80 लाख टीचर पढ़ाने के काम में लगे हुए हैं. तब इनमें तकरीबन 13.18  फीसदी यानि 10 लाख 34 हज़ार टीचर ठेके पर टीचर थे जो अब काफी बढ़ गए हैं.

नए आंकड़ों के मुताबिक झारखण्ड में प्राइमरी लेवल पर कुल 57 हज़ार 498 टीचर थे लेकिन अब इनमें से केवल 17 हज़ार 537 टीचर परमानेंट हैं और बाकी ठेके पर काम कर रहे हैं. साफ शब्दों में कहें तो देश की शिक्षा व्यवस्था ठेके पर चल रही है और नई शिक्षा नीति में इसे चलन को बढ़ावा मिलने की आशंका है.

नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा देने की बात कही गई है लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि देश में केवल 25 फीसदी स्कूल में बिजली और कंप्यूटर उपलब्ध हैं और इनमें लगे आधे कंप्यूटर चलते भी नहीं हैं. असम में केवल 0.27 फीसदी प्राइमरी स्कूल, झारखण्ड में 1.49 फीसदी, बिहार में 1.52 फीसदी और मध्य प्रदेश में 1.55 प्राइमरी स्कूल में बिजली और कंप्यूटर उपलब्ध हैं।

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