अर्थव्यवस्था की हालत पतली, सरकार के आगे ख़र्च चलाने का संकट
अर्थव्यवस्था का ताज़ा हाल विकास दर की सुस्त रफ़्तार से सामने आ चुका है. इस बीच सरकार की आमदनी घट रही है और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडी ने निवेश के लिए भारत को नेगेटिव कैटगरी में डाल दिया है. अब सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि निवेश और टैक्स वसूली के मोर्चे पर पिछड़ने के बाद वो अपने ख़र्च और योजनाओं के लिए पैसा कहां से लाएगी?
संकट में फंसी अर्थव्यवस्था के बीच सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ख़र्च और कल्याणकारी योजनाओं के लिए पैसा जुटाना है. तमाम आंकड़े बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ़्तार सुस्त पड़ने के साथ-साथ उसकी आमदनी भी घटती जा रही है.
साल 2016 में इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स तेज़ी से ऊपर जा रहा था लेकिन साल 2020 आते-आते इसमें नेगेटिव ग्रोथ दर्ज हुई है. पिछले साल अर्थव्यवस्था की पतली होती हालत पर केंद्र सरकार घिरी तो वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट टैक्स में रियायत देने का ऐलान किया था. मकसद निवेश को बढ़ावा देना लेकिन कॉरपोरेट टैक्स में छूट देने से एक तरफ तो सरकार की आमदनी गिरी, वहीं दूसरी तरफ निवेशक भी उत्साहित नहीं हुए और बाज़ार में पैसा नहीं लगाया. अब हाल यह है कि निवेश तो बढ़ा नहीं और कॉरपोरेट टैक्स का और नुकसान हो गया. वीडियो देखिए इस ग्राफ से साफ है कि साल 2016 में निवेश के तौर पर लगने वाला पैसा साल 2020 में घटने लगा है. आसान भाषा में कहें तो लोग कारोबार में लगा पैसा निकालने लगे हैं. साल 2019-20 के लिए 19.32 लाख करोड़ का टैक्स वसूली का लक्ष्य रखने वाली सरकार लगभग 10 फीसदी पीछे रह गयी है जिससे वित्तीय घाटा भी बढ़कर 4.6 फीसदी हो गया है. रही सही कसर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग्स एजेंसी मूडी ने निकाल दी है जिसने भारत को निवेश के तौर पर नेगेटिव केटेगरी में रखा है. हालात और बिगड़ते हैं तो मूडी भारत को जंक कैटगरी में डाल सकता है. हालांकि माना जा रहा है कि ताज़ा हालात बस झांकी है. इससे बुरा दौर आने वाला है. वित्त वर्ष 2020-21 की शुरुआत ऐसे समय में हुई जब देश लॉकडाउन में था. पिछले 70 दिनों से लगभग सुस्त पड़ी आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने में ही काफी पैसा और शक्ति लगानी पड़ेगी.
साल 2016 में इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स तेज़ी से ऊपर जा रहा था लेकिन साल 2020 आते-आते इसमें नेगेटिव ग्रोथ दर्ज हुई है. पिछले साल अर्थव्यवस्था की पतली होती हालत पर केंद्र सरकार घिरी तो वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट टैक्स में रियायत देने का ऐलान किया था. मकसद निवेश को बढ़ावा देना लेकिन कॉरपोरेट टैक्स में छूट देने से एक तरफ तो सरकार की आमदनी गिरी, वहीं दूसरी तरफ निवेशक भी उत्साहित नहीं हुए और बाज़ार में पैसा नहीं लगाया. अब हाल यह है कि निवेश तो बढ़ा नहीं और कॉरपोरेट टैक्स का और नुकसान हो गया. वीडियो देखिए इस ग्राफ से साफ है कि साल 2016 में निवेश के तौर पर लगने वाला पैसा साल 2020 में घटने लगा है. आसान भाषा में कहें तो लोग कारोबार में लगा पैसा निकालने लगे हैं. साल 2019-20 के लिए 19.32 लाख करोड़ का टैक्स वसूली का लक्ष्य रखने वाली सरकार लगभग 10 फीसदी पीछे रह गयी है जिससे वित्तीय घाटा भी बढ़कर 4.6 फीसदी हो गया है. रही सही कसर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग्स एजेंसी मूडी ने निकाल दी है जिसने भारत को निवेश के तौर पर नेगेटिव केटेगरी में रखा है. हालात और बिगड़ते हैं तो मूडी भारत को जंक कैटगरी में डाल सकता है. हालांकि माना जा रहा है कि ताज़ा हालात बस झांकी है. इससे बुरा दौर आने वाला है. वित्त वर्ष 2020-21 की शुरुआत ऐसे समय में हुई जब देश लॉकडाउन में था. पिछले 70 दिनों से लगभग सुस्त पड़ी आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने में ही काफी पैसा और शक्ति लगानी पड़ेगी.
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