राजनीतिक विज्ञापनों पर नकेल कसने की तैयारी में Google

by GoNews Desk 4 years ago Views 55461

Google Cracks Down On Political Ads As Pressure On
टेक्नोलोजी के विस्तार के साथ-साथ टेक कंपनियों के सामने एक बड़ी चुनौती ये है कि वो अपने यूज़र्स को डेटा सिक्योरिटी और प्राइवेसी को कॉन्फिडेंशियल रखे। इसी को ध्यान में रखते हुए दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन गूगल अब राजनीतिक विज्ञापनों पर नकेल कसने की तैयारी में है।

गूगल ने उन विज्ञापनों पर पाबंदी लगाने का फैसला लिया है जिसमें यूज़र्स को उनके राजनीतिक झुकाव के आधार पर टार्गेट किया जाता है। गूगल ये क़दम उस वक्त उठाने जा रहा है जब दुनिया भर में माइक्रो-टार्गेटेड पॉलिटिकल एड्स का बोलबाला है।


पिछले महीने ट्विटर ने भी ऐलान कर सभी राजनीतिक विज्ञापनों पर पाबंदियां लगा दी थी। गूगल ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक विज्ञापनों में विश्वास को बढ़ावा देने के लिये ये फैसला लिया गया है।

साथ ही गूगल अपनी विज्ञापन नीतियों को स्पष्ट करने की भी योजना बना रहा है। गूगल का कहना है कि इस प्रकार के विज्ञापन लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को कम करता है।

गूगल एड्स के एग्ज़क्यूटिव स्कॉट स्पेंसर ने एक ब्लॉगपोस्ट में लिखा है कि यदि आप ऑफिस जा रहे हैं या ऑफिस के लिये फर्नीचर बेच रहे हैं, ‘सभी के लिये एक ही विज्ञापन नीति होगी। उन्होंने यह लिखा है कि ‘भारत, यूरोपीयन यूनियन और संघीय अमेरिकी चुनाव होने से पहले ही चुनावी विज्ञापनों की पार्दर्शिता को बढ़ावा देने के लिये विज्ञापनों पर राजनीतिक दलों ने कितना खर्च किया, कितने लोगों ने उन विज्ञपनों को देखा और उन्हें किस तरह से टार्गेट किया गया, हमने इसकी जानकारी ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट में दी थी।'

गूगल का ये बयान तब आया है जब भारतीय पत्रकारों के व्हॉट्सेप पर नज़र रखने की ख़बर फैली। बता दें कि बीते दिनों भारत के नामित पत्रकार, सोशल एक्टिविस्ट और अन्य चर्चित लोगों का व्हॉट्सेप हैक किये जाने की ख़बर फैली थी। इस मामले की जांच के लिये कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता में एक स्टैंडिंग कमिटी बनाई गई है।

गूगल का ये फैसले अगले एक हफ़्ते के भीतर यूके में लागू हो जाएगा। वहीं यूरोपियन यूनियन में 2019 के आख़री में लागू किया जाएगा और पूरी दुनिया में 6 जनवरी 2020 तक लागू किया जा सकता है।

सर्विलांस जाइंट्स

लंदन स्थित मानव अधिकार समूह 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने बुधवार को एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि फेसबुक और गूगल जिस डेटा कलेक्शन बिज़नेस मॉडल पर आधारित है वो दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए ख़तरे का संकेत है। इसने तकनीकी दिग्गजों के मुख्य व्यवसाय मॉडल में बड़ा परिवर्तन किया है।

एमनेस्टी की रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक जाइंट्स अरबों उपयोगकर्ताओं को निशुल्क ही सेवाएं प्रदान करते हैं। लोग सिर्फ सर्विसेज़ के लिए ही पेमेंट करते हैं और साथ ही अपना पर्सनल डेटा भी शेयर करते हैं, जो लगातार वेब और भौतिक दुनिया में भी ट्रैक किये जाते हैं।

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