एनआरसी की मार: 1964 में पूर्वी पाकिस्तान से आए हिंदू अब शरणार्थी
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस की आख़िरी लिस्ट से बाहर हुए लाखों लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। इनमें ऐसे बंगाली हिंदू भी शामिल हैं जिन्हें नागरिकता रजिस्टर से बाहर किए जाने की उम्मीद नहीं थी। ऐसे लोग अब दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
असम के कामरूप ज़िले के मलयाबाड़ी गांव में बंगाली हिंदू 1964 में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करके आए थे। गांव में इनकी आबादी तक़रीबन दो हज़ार है और अभी तक ज़िंदगी छोटे-मोटे कामों के भरोसे गुज़र रही थी मगर नेशनल रजिस्टर में नाम नहीं आने से अब यहां उथल पुथल मची हुई है।
बाबुल दत्त बंगाली हिंदू हैं, उन्होंने आरोप लगाया है कि एक ही परिवार के कुछ सदस्यों का नाम एनआरसी में आ गया जबकि उनका परिवार इससे बाहर हो गया। लिस्ट में नाम नहीं आने का ठीकरा शुभेंदु दास एनआरसी की प्रक्रिया से जुड़े अफ़सरों पर फोड़ते हैं। शुभेंदू कहते हैं कि नागरिकता साबित करने के लिए अब फॉरनर्स ट्रिब्यूनल जाना है लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए अपनी गायों और ज़मीनों को बेचना पड़ेगा।
मलयाबाड़ी की तरह सैकड़ों गांव हैं जहां नेशनल रजिस्टर में नाम नहीं आने से लोगों में बेचैनी बढ़ रही है। हालांकि असम में बीजेपी के मंत्री हेमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि लिस्ट से बाहर हुए हिंदू समुदाय की सुरक्षा के लिए ज़रूरी उपाय किए जाएंगे।