क्या ‘हाउडी मोदी’ से भारत और अमेरिका का व्यापारिक तनाव कम होगा!
भारत को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ह्यूस्टन में 22 सितम्बर को होने वाली हाउडी मोदी रैली के बाद भारत और अमेरिका के बीच का व्यापारिक तनाव दूर हो जाएगा. दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प अपनी अमेरिका फ़र्स्ट नीति के तहत भारत के साथ अपने व्यापार घाटे को ख़त्म करने की कोशिश में हैं.
अमेरिका के साथ भारत का व्यापार 24.2 बिलियन डॉलर के मुनाफ़े में है, इसीलिये अमेरिका ने इसी साल जून में Generalized System of Preference programme के तहत भारत को तरजीह के दर्जे को ख़त्म कर दिया था. इतना ही नहीं अमेरिका, भारत पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए World Trade Organisation जा चुका है.
जवाब में भारत ने अमेरिका से आयात होने वाले कई सामानों पर टैरिफ़ बढ़ा दिया था. ट्रम्प के लिये राहत की बात ये है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से अमेरिका से भारत का क्रूड ऑयाल का आयात तीन गुने से भी ज़्यादा बढ़ गया है लेकिन ट्रम्प इतने से ही ख़ुश नहीं हैं. वो व्यापार में भारत का मुनाफ़ा ख़त्म कर देना चाहते हैं. वीडियो देखिये ट्रम्प चाहते हैं कि भारत हार्ट स्टंट और नी इम्पलांट जैसे कईं मेडिकल उपकरणों को प्राइस कंट्रोल से बाहर करे जिसकी वजह से महंगा सामान बेचने वाली अमेरिकी फ़ार्मा कम्पनियों को भारी नुकसान हो रहा है. ट्रम्प की एक मांग ये भी है कि भारत आईटी और टेलीकॉम सेक्टर के उपकरणों पर लगने वाले भारी टैरिफ़ को कम करे ताकि अमेरिकी कम्पनियों को भारत में व्यापार करने में आसानी हो और ये सब इसलिये ताकि भारत का अमेरिका के साथ जो व्यापार मुनाफ़े में है उसे बराबर किया जा सके. हालांकि पांच साल से भारत का ये मुनाफ़ा लगातार कम होता जा रहा है. साल 2013 में अमेरिका के साथ भारत 27.1 बिलियन डॉलर के ट्रेड सरप्लस में था. ये 2018 में कम होकर 24.2 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो अमेरिकी दबाव का असर है. Goods Trade में अमेरिका के साथ भारत साल 2013 में 20 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में 21.3 बिलियन डॉलर पर आ गया. मेन्युफ़ेक्चरिंग ट्रेड में भारत अमेरिका के साथ साल 2013 में 19.9 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में 25.5 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. आईटी सेक्टर को प्रभावित करने वाले सर्विस ट्रेड में भारत अमेरिका के साथ साल 2013 में 7.1 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में ये 3 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो आधे से भी कम हो गया है. अमेरिका के लिये भारत का व्यापार अहम नहीं है, क्योंकि चीन से सिर्फ़ एक साल का उसका घाटा 419 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा है लेकिन कूटनीतिक दबाव बनाने और अपने हथियार बेचने के लिए ट्रम्प व्यापारिक घाटे पर ज़ोर दे रहे हैं.
जवाब में भारत ने अमेरिका से आयात होने वाले कई सामानों पर टैरिफ़ बढ़ा दिया था. ट्रम्प के लिये राहत की बात ये है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से अमेरिका से भारत का क्रूड ऑयाल का आयात तीन गुने से भी ज़्यादा बढ़ गया है लेकिन ट्रम्प इतने से ही ख़ुश नहीं हैं. वो व्यापार में भारत का मुनाफ़ा ख़त्म कर देना चाहते हैं. वीडियो देखिये ट्रम्प चाहते हैं कि भारत हार्ट स्टंट और नी इम्पलांट जैसे कईं मेडिकल उपकरणों को प्राइस कंट्रोल से बाहर करे जिसकी वजह से महंगा सामान बेचने वाली अमेरिकी फ़ार्मा कम्पनियों को भारी नुकसान हो रहा है. ट्रम्प की एक मांग ये भी है कि भारत आईटी और टेलीकॉम सेक्टर के उपकरणों पर लगने वाले भारी टैरिफ़ को कम करे ताकि अमेरिकी कम्पनियों को भारत में व्यापार करने में आसानी हो और ये सब इसलिये ताकि भारत का अमेरिका के साथ जो व्यापार मुनाफ़े में है उसे बराबर किया जा सके. हालांकि पांच साल से भारत का ये मुनाफ़ा लगातार कम होता जा रहा है. साल 2013 में अमेरिका के साथ भारत 27.1 बिलियन डॉलर के ट्रेड सरप्लस में था. ये 2018 में कम होकर 24.2 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो अमेरिकी दबाव का असर है. Goods Trade में अमेरिका के साथ भारत साल 2013 में 20 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में 21.3 बिलियन डॉलर पर आ गया. मेन्युफ़ेक्चरिंग ट्रेड में भारत अमेरिका के साथ साल 2013 में 19.9 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में 25.5 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. आईटी सेक्टर को प्रभावित करने वाले सर्विस ट्रेड में भारत अमेरिका के साथ साल 2013 में 7.1 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था जो 2018 में ये 3 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो आधे से भी कम हो गया है. अमेरिका के लिये भारत का व्यापार अहम नहीं है, क्योंकि चीन से सिर्फ़ एक साल का उसका घाटा 419 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा है लेकिन कूटनीतिक दबाव बनाने और अपने हथियार बेचने के लिए ट्रम्प व्यापारिक घाटे पर ज़ोर दे रहे हैं.
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