जाली जंगल: भारत में जंगलों पर सरकारी दावा, सच या सिर्फ कागज़ी
सरकार का दावा है कि भारत में जंगलों का विस्तार हो रहा है और लगभग एक चौथाई हिस्से पर जंगल हैं। लेकिन सरकार के इस दावे में यह राज़ छुपा है कि सरकार ने नियमों को बदलकर अब व्यावसायिक पेड़ों को भी जंगल में शामिल कर लिया हैं। जो पर्यावरण के लिए खतरनाक भी हो सकता हैं। क्या है पूरा मामला देखिये आनन्द बनर्जी की ये रिपोर्ट...
सरकार का दावा है कि देश में हर साल जंगलों का इलाका बढ़ रहा है। वन, पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज मंत्रालय ने 2019 की रिपोर्ट में दावा किया है की देश के साढ़े 24 फीसदी क्षेत्र में जंगल मौजूद हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जब सड़कों, मकान, बांध और खनन के लिए बड़ी तदाद में पेड़ काटे जा रहे हैं। तो नये जंगल कहा से आ रहे हैं। जिन्हें उगाने में कम से कम पचास साल लगते हैं।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया यानि FSI ने जंगल की परिभाषा बदल दी हैं। जिसमें अब उन सभी पेड़ों के क्षेत्र को शामिल कर लिया गया हैं। जिनमें 10 फीसदी में पेड़ों का इलाका है फ़िर चाहे वो सरकारी हो या निजी। इसमें पाम ऑयल , यूक्लिप्टिस, रबर, पॉपुलर जैसी सभी फसले अब जंगलों की श्रेणी में आ गई हैं। पहले यह पेड़ों की श्रेणी में आते थे लेकिन अब जंगल कहलाते हैं। यह सरकारी दावों का दो दशमलव आठ फीसदी हैं। यानि देश में जंगल इक्कीस दशमलव छह फीसदी हैं। साढ़े चौबीस फीसदी नहीं जैसे सरकार का दावा है। पाम ऑयल और यूकिलिप्टिस जैसी जातियां पानी ज्यादा पीती हैं। जिनसे पर्यावरण को नुकसान भी होता हैं। सरकार ने 2015 में पाँच हजार वर्ग किलोमीट और साल 2018 में आठ हजार वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़ने के दावे इसी नई परिभाष के तहत किये हैं। इन दावों पर विशेषज्ञ हैरानी जाहिर करते हैं। सरकार खुद मानती है कि प्राकृतिक जंगलों की जगह मानव द्वारा उगाए गए पेड़ नहीं ले सकते। एक अनुमान के हिसाब से जंगल क्षेत्र का 13 फीसदी व्यावसायिक पेड़ है। यानि देश का कुल जंगल दावों से काफी कम है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया यानि FSI ने जंगल की परिभाषा बदल दी हैं। जिसमें अब उन सभी पेड़ों के क्षेत्र को शामिल कर लिया गया हैं। जिनमें 10 फीसदी में पेड़ों का इलाका है फ़िर चाहे वो सरकारी हो या निजी। इसमें पाम ऑयल , यूक्लिप्टिस, रबर, पॉपुलर जैसी सभी फसले अब जंगलों की श्रेणी में आ गई हैं। पहले यह पेड़ों की श्रेणी में आते थे लेकिन अब जंगल कहलाते हैं। यह सरकारी दावों का दो दशमलव आठ फीसदी हैं। यानि देश में जंगल इक्कीस दशमलव छह फीसदी हैं। साढ़े चौबीस फीसदी नहीं जैसे सरकार का दावा है। पाम ऑयल और यूकिलिप्टिस जैसी जातियां पानी ज्यादा पीती हैं। जिनसे पर्यावरण को नुकसान भी होता हैं। सरकार ने 2015 में पाँच हजार वर्ग किलोमीट और साल 2018 में आठ हजार वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़ने के दावे इसी नई परिभाष के तहत किये हैं। इन दावों पर विशेषज्ञ हैरानी जाहिर करते हैं। सरकार खुद मानती है कि प्राकृतिक जंगलों की जगह मानव द्वारा उगाए गए पेड़ नहीं ले सकते। एक अनुमान के हिसाब से जंगल क्षेत्र का 13 फीसदी व्यावसायिक पेड़ है। यानि देश का कुल जंगल दावों से काफी कम है।
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