लाखों डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा देश कोरोना का मुक़बला कर पाएगा?
देश में कोरोना संक्रमण के मामले तीन लाख के क़रीब पहुंचने वाले हैं जिनसे निबटने की पूरी ज़िम्मेदारी डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स के कंधों पर आ गई है. मगर भारत जैसे विकासशील देश में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बेहद कमज़ोर है. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की तादाद बेहद कम है तो निजी अस्पतालों का महंगा इलाज ग़रीब और निम्न मध्यवर्ग के बूते के बाहर है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन इस पैमाने पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कहीं नहीं टिकती. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की साल 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 11 हज़ार से ज़्यादा की आबादी पर महज़ एक सरकारी डॉक्टर है. उत्तर भारत के राज्यों में हालात बद से बदतर है.
वीडियो देखिए बिहार में एक सरकारी डॉक्टर के कंधों पर 28 हज़ार 391 लोगों के इलाज की ज़िम्मेदारी है. वहीं उत्तर प्रदेश में 19 हज़ार 962, झारखंड में 18 हज़ार 518, मध्य प्रदेश में 17 हज़ार 192, महाराष्ट्र में 16 हज़ार 992 और छत्तीसगढ़ में 15 हज़ार 916 लोगों पर महज़ एक डॉक्टर है. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे संसद में बता चुके हैं कि देश में कुल 6 लाख डॉक्टरों की कमी है. हाल इतना बुरा है कि देश के 15 हज़ार 700 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ एक डॉक्टर के भरोसे चल रहे हैं. इंडियन जर्नल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि अगर भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक पर पहुंचना है तो उसे 2030 तक 27 लाख डॉक्टरों की भर्ती करनी होगी. हालांकि इसकी उम्मीद बेहद कम है क्यूंकि स्वास्थ्य सेवा पर भारत अपनी कुल जीडीपी का सिर्फ 1.3 फीसदी हिस्सा खर्च करता है तो देश अपनी जीडीपी का बेहद कम हिस्सा ख़र्च करता है जबकि कई दूसरे देश अपने हेल्थकेयर सिस्टम को चाकचौबंद रखने के लिए अपनी जीडीपी का 6 फीसदी तक खर्च करते हैं.
वीडियो देखिए बिहार में एक सरकारी डॉक्टर के कंधों पर 28 हज़ार 391 लोगों के इलाज की ज़िम्मेदारी है. वहीं उत्तर प्रदेश में 19 हज़ार 962, झारखंड में 18 हज़ार 518, मध्य प्रदेश में 17 हज़ार 192, महाराष्ट्र में 16 हज़ार 992 और छत्तीसगढ़ में 15 हज़ार 916 लोगों पर महज़ एक डॉक्टर है. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे संसद में बता चुके हैं कि देश में कुल 6 लाख डॉक्टरों की कमी है. हाल इतना बुरा है कि देश के 15 हज़ार 700 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ एक डॉक्टर के भरोसे चल रहे हैं. इंडियन जर्नल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि अगर भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक पर पहुंचना है तो उसे 2030 तक 27 लाख डॉक्टरों की भर्ती करनी होगी. हालांकि इसकी उम्मीद बेहद कम है क्यूंकि स्वास्थ्य सेवा पर भारत अपनी कुल जीडीपी का सिर्फ 1.3 फीसदी हिस्सा खर्च करता है तो देश अपनी जीडीपी का बेहद कम हिस्सा ख़र्च करता है जबकि कई दूसरे देश अपने हेल्थकेयर सिस्टम को चाकचौबंद रखने के लिए अपनी जीडीपी का 6 फीसदी तक खर्च करते हैं.
Latest Videos