नागरिकता क़ानून बिल लोकसभा में पेश होते ही हंगामा
अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को समाप्त किया और असम में एनआरसी लागू कर बहुसंख्यक वोटों को अपनी तरफ रिझाने का काम किया है. भाजपा की इन्हीं नीतियों में से एक है नागरिकता संशोधन विधेयक.
नागरिकता संशोधन विधेयक को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश कर दिया है। हालांकि इस विधेयक को पास करवाने के पीछे मोदी सरकार की ये दूसरी कोशिश है. पहले कार्यकाल में इस विधेयक को लोकसभा से पारित किया जा चुका है. लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसक विरोधों को देखते हुए सरकार ने बिल को राज्यसभा में पेश नहीं किया. सरकार का पहला कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही ये विधेयक स्वत: निरस्त हो गया.
पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसक विरोधों के बावजूद केन्द्र सरकार नागरिकता कानून में संशोधन के पीछे अपनी पूरी ताक़त झोंक रही है. केन्द्र की मोदी सरकार ने बिल को लेकसभा से पारित करवाने के लिये अपने सभी सांसदों को मौजूद रहने का आदेश दिया है. पूर्वोत्तर राज्य असम में बिल का पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। वहीं लोकसभा में भी सीएबी बिल को लेकर विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं। बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्वोत्तर राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया. पूर्वोत्तर की सभी 25 लोकसभा सीटों में से भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों को 18 सीटों पर जीत मिली. ज़ाहिर है इस जीत ने बीजेपी को और मज़बूत करने का काम किया है. जिससे केन्द्र की बीजेपी सरकार को नागरिकता कानून में संशोधन के लिये और अधिक विश्वास बढ़ा है. नागरिकता कानून में संशोधन कर बाहरी देशों से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान किये जाने का प्रावधान है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में दिये अपने भाषण में कहा था कि नागरिकता कानून में संशोधन कर धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए बाहरी लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. जिसमें गृह मंत्री अमित शाह ने मुसलमानों का कोई जिक्र नहीं किया. शिवसेना नेता संजय राउत ने इस नागरकिता संशोधन बिल पर कहा कि ‘’आपके (केन्द्र सरकार) ऊपर जो आरोप है वोट बैंक पॉलिटिक्स का, उसको ख़त्म करना है तो हमारी ये मांग है कि इन लोगों को तो सिर्फ हिंदुस्तान में आश्रय चाहिये। आप उनको 25 साल तक वोटिंग का अधिकार मत दीजिये’’। वहीं इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग के सांसदों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया है. सांसदों ने हाथ में तख़्तियां ले रखी थीं जिनपर लिखा था, ‘बीजेपी सरकार अपनी सांप्रदायिक राजनीति बंद करो’, ‘नागरिकता संशोधन बिल को हमेशा के लिए वापस लो’, ‘नागरिकता संशोधन बिल रोको, संविधान बचाओ’ असम के ढिबरू से लोकसभा में सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि यह बिल संविधान, देश के धर्म निरपेक्ष ढांचे और हिंदू मुस्लिम एकता के ख़िलाफ़ है असम में एनआरसी लागू करने से लोगों को तगड़ा झटका लगा है। पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य बांग्लादेश की सीमा के करीब हैं. केन्द्र सरकार का मानना है कि इन राज्यों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आकर लोग अवैध तरीके से बस गए हैं, जिन्हें देश से निकाला जाना चाहिये. जिसमें मुसलमानों की तादाद ज़्यादा है. नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी में अंतर है! अपने भाषण में गृह मंत्री अमित शाह ने दो विधेयकों का ज़िक्र किया. जिसमें नागरिकता कानून में संशोधन और एनआरसी को पूरे देश में लागू करना शामिल है. अमित शाह के मुताबिक़ 31 दिसंबर 2014 के बाद से भारत आए ग़ैर मुसलमानों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी. वहीं दूसरा बिल एनआरसी के नाम से चर्चित है। गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि 19 जुलाई 1948 के बाद अवैध तरीके से भारत आए लोगों को एनआरसी के तहत पहचान कर देश से बाहर निकाला जाएगा. हालांकि बीते 31 अगस्त को केन्द्र सरकार ने असम में एनआरसी लागू कर 19 लाख लोगों को विदेशी घोषित कर दिया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार असम में जारी एनआरसी की कट ऑफ तारिख 25 मार्च 1971 है जबकि अगले देशव्यापी एनआरसी में कट ऑफ तारीख 19 जुलाई 1948 रखी गई है. जिसे पूरे देश में लागू किया जाना है.
पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसक विरोधों के बावजूद केन्द्र सरकार नागरिकता कानून में संशोधन के पीछे अपनी पूरी ताक़त झोंक रही है. केन्द्र की मोदी सरकार ने बिल को लेकसभा से पारित करवाने के लिये अपने सभी सांसदों को मौजूद रहने का आदेश दिया है. पूर्वोत्तर राज्य असम में बिल का पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। वहीं लोकसभा में भी सीएबी बिल को लेकर विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं। बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्वोत्तर राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया. पूर्वोत्तर की सभी 25 लोकसभा सीटों में से भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों को 18 सीटों पर जीत मिली. ज़ाहिर है इस जीत ने बीजेपी को और मज़बूत करने का काम किया है. जिससे केन्द्र की बीजेपी सरकार को नागरिकता कानून में संशोधन के लिये और अधिक विश्वास बढ़ा है. नागरिकता कानून में संशोधन कर बाहरी देशों से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान किये जाने का प्रावधान है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में दिये अपने भाषण में कहा था कि नागरिकता कानून में संशोधन कर धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए बाहरी लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. जिसमें गृह मंत्री अमित शाह ने मुसलमानों का कोई जिक्र नहीं किया. शिवसेना नेता संजय राउत ने इस नागरकिता संशोधन बिल पर कहा कि ‘’आपके (केन्द्र सरकार) ऊपर जो आरोप है वोट बैंक पॉलिटिक्स का, उसको ख़त्म करना है तो हमारी ये मांग है कि इन लोगों को तो सिर्फ हिंदुस्तान में आश्रय चाहिये। आप उनको 25 साल तक वोटिंग का अधिकार मत दीजिये’’। वहीं इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग के सांसदों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया है. सांसदों ने हाथ में तख़्तियां ले रखी थीं जिनपर लिखा था, ‘बीजेपी सरकार अपनी सांप्रदायिक राजनीति बंद करो’, ‘नागरिकता संशोधन बिल को हमेशा के लिए वापस लो’, ‘नागरिकता संशोधन बिल रोको, संविधान बचाओ’ असम के ढिबरू से लोकसभा में सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि यह बिल संविधान, देश के धर्म निरपेक्ष ढांचे और हिंदू मुस्लिम एकता के ख़िलाफ़ है असम में एनआरसी लागू करने से लोगों को तगड़ा झटका लगा है। पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य बांग्लादेश की सीमा के करीब हैं. केन्द्र सरकार का मानना है कि इन राज्यों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आकर लोग अवैध तरीके से बस गए हैं, जिन्हें देश से निकाला जाना चाहिये. जिसमें मुसलमानों की तादाद ज़्यादा है. नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी में अंतर है! अपने भाषण में गृह मंत्री अमित शाह ने दो विधेयकों का ज़िक्र किया. जिसमें नागरिकता कानून में संशोधन और एनआरसी को पूरे देश में लागू करना शामिल है. अमित शाह के मुताबिक़ 31 दिसंबर 2014 के बाद से भारत आए ग़ैर मुसलमानों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी. वहीं दूसरा बिल एनआरसी के नाम से चर्चित है। गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि 19 जुलाई 1948 के बाद अवैध तरीके से भारत आए लोगों को एनआरसी के तहत पहचान कर देश से बाहर निकाला जाएगा. हालांकि बीते 31 अगस्त को केन्द्र सरकार ने असम में एनआरसी लागू कर 19 लाख लोगों को विदेशी घोषित कर दिया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार असम में जारी एनआरसी की कट ऑफ तारिख 25 मार्च 1971 है जबकि अगले देशव्यापी एनआरसी में कट ऑफ तारीख 19 जुलाई 1948 रखी गई है. जिसे पूरे देश में लागू किया जाना है.
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