गुजरात: सात हज़ार रुपए प्रति क्विंटल में बिकने वाली कपास अब तीन हज़ार में नहीं बिक रही
गुजरात का सौराष्ट्र इलाक़ा कपास की खेती के लिए मशहूर है लेकिन लॉकडाउन के चलते उनकी फसल औने-पौने दाम पर भी नहीं बिक रही है. राज्य के किसानों के मुताबिक साल 2012 -2013 में एक क्विंटल कपास 7,000 से लेकर 7500 तक बिका लेकिन अब 3000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भी नहीं बिक पा रहा है.
सुरेंद्रनगर के किसान राजू के मुताबिक लॉकडाउन के पहले कपास का भाव 4500 रूपये प्रति क्विंटल था लेकिन अब प्रति क्विंटल में एक हज़ार से डेढ़ हज़ार रुपए तक की कमी आई है.
किसानों की दूसरी तकलीफ यह है कि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए कई कई दिन तक इंतज़ार करना पड़ता है. कई बार इंतज़ार करते-करते पूरी फसल बेमौसम बारिश की भेंट चढ़ जाती है. राजू के मुताबिक उनके ज़िले में कपास के किसान हज़ारों हैं लेकिन राज्य में ख़रीद के केंद्र सिर्फ चार हैं. और एक केंद्र पर हर दिन सिर्फ 40 किसानों को बुलाया जाता है. जूनागढ़ के किसान प्रकाशभाई कहते है कि किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है और उसका हाल गुलामों जैसा हो गया है. किसान आवारा जानवरों से परेशान था और अब मंडी में भाव भी नहीं चढ़ रहा. किसानों की मानें तो लॉक डाउन के चलते कपास की मांग में 30 फ़ीसदी की कमी आ गई है. किसानों ने केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को किसान विरोधी क़रार देते हुए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकज पर भी सवाल उठाए. किसानों ने कहा कि 20 लाख करोड़ के पैकेज में उनके लिए कोई राहत नहीं है.
किसानों की दूसरी तकलीफ यह है कि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए कई कई दिन तक इंतज़ार करना पड़ता है. कई बार इंतज़ार करते-करते पूरी फसल बेमौसम बारिश की भेंट चढ़ जाती है. राजू के मुताबिक उनके ज़िले में कपास के किसान हज़ारों हैं लेकिन राज्य में ख़रीद के केंद्र सिर्फ चार हैं. और एक केंद्र पर हर दिन सिर्फ 40 किसानों को बुलाया जाता है. जूनागढ़ के किसान प्रकाशभाई कहते है कि किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है और उसका हाल गुलामों जैसा हो गया है. किसान आवारा जानवरों से परेशान था और अब मंडी में भाव भी नहीं चढ़ रहा. किसानों की मानें तो लॉक डाउन के चलते कपास की मांग में 30 फ़ीसदी की कमी आ गई है. किसानों ने केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को किसान विरोधी क़रार देते हुए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकज पर भी सवाल उठाए. किसानों ने कहा कि 20 लाख करोड़ के पैकेज में उनके लिए कोई राहत नहीं है.
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