कर्ज़ के बोझ तले दबे नागरिकों पर कर्ज़ का भार बढ़ाना राहत कैसे?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को दोबारा पटरी पर लाने के लिए तीन लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ का ऐलान किया है. इसके अलावा एनबीएफसी या फिर हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिए 30 हज़ार करोड़ की स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम लाने की तैयारी चल रही है. बिजली कंपनियों के लिए 90 हज़ार करोड़ रुपए की नकदी का इंतज़ाम किया गया है. मगर सरकार यह सारा पैसा क़र्ज़ के तौर पर दे रही है, जिसे ब्याज समेत वापस लौटना होगा.
क़र्ज़ को राहत कहना सही है या नहीं, इसपर बहस की जा सकती है. मगर जब नागरिक पहले ही क़र्ज़ के बोझ तले दबे हों तो उनपर कर्ज़ का बोझ बढ़ाना कितना जायज़ है. फिलहाल हर शख्स पर बैंक का कितना कर्ज़ा है, यह लोकसभा के आंकड़ों से पता चलता है. इसके मुताबिक साल 2011-12 में हरेक भारतीय नागरिक पर 37 हज़ार 802 रुपए का क़र्ज़ था जो 2018-19 में बढ़कर 73 हज़ार 637 रुपए पर पहुंच गया है.
आंकड़ों के मुताबिक साल 2011-12 में हर भारतीय पर 37 हज़ार 802 रुपए का क़र्ज़ था. इसी तरह साल 2012-13 में 42 हज़ार 594 रुपए, 2013-14 में 47 हज़ार 914 रुपए, 2014-15 में 51 हज़ार 589 रुपए, 2015-16 में 56 हज़ार 505 रुपए, 2016-17 में 60 हज़ार 365.4 रुपए और 2017-18 में हुआ 65 हज़ार 542 रुपए हो गया. भारतीयों पर सबसे ज्यादा क़र्ज़ चढ़ा 2018-19 के बीच जब आंकड़ा 73 हज़ार 637 पहुंच गया. वीडियो देखिए आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति व्यक्ति आमदनी की रफ़्तार कमज़ोर होती जा रही है, वहीं देश में प्रति व्यक्ति कर्ज़ तेज़ी से बढ़ रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर प्रति व्यक्ति आय के अनुपात में प्रति व्यक्ति कर्ज़ भी बढ़ता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होता है लेकिन आमदनी का घटना और कर्ज़ का बढ़ना शुभ संकेत नहीं होता.
आंकड़ों के मुताबिक साल 2011-12 में हर भारतीय पर 37 हज़ार 802 रुपए का क़र्ज़ था. इसी तरह साल 2012-13 में 42 हज़ार 594 रुपए, 2013-14 में 47 हज़ार 914 रुपए, 2014-15 में 51 हज़ार 589 रुपए, 2015-16 में 56 हज़ार 505 रुपए, 2016-17 में 60 हज़ार 365.4 रुपए और 2017-18 में हुआ 65 हज़ार 542 रुपए हो गया. भारतीयों पर सबसे ज्यादा क़र्ज़ चढ़ा 2018-19 के बीच जब आंकड़ा 73 हज़ार 637 पहुंच गया. वीडियो देखिए आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति व्यक्ति आमदनी की रफ़्तार कमज़ोर होती जा रही है, वहीं देश में प्रति व्यक्ति कर्ज़ तेज़ी से बढ़ रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर प्रति व्यक्ति आय के अनुपात में प्रति व्यक्ति कर्ज़ भी बढ़ता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होता है लेकिन आमदनी का घटना और कर्ज़ का बढ़ना शुभ संकेत नहीं होता.
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