बिना डॉक्टर्स और मेडिकल साजो सामान के कैसे लड़ेंगे कोरोना से जंग ?
कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर देश में स्वास्थ्य सेवा का ढांचा चिंता बढ़ा रहा है. तमाम राज्यों अस्पताल स्वास्थ्य से जुड़े उपकरणों की किल्लत से जूझ रहे हैं. यूपी में लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल की एक नर्स शशिकला ने वीडियो जारीकर बताया कि उन्हें किन हालात में काम करना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि जब राजधानी के अस्पताल का हाल यह है तो राज्य के कस्बों और ग्रामीण इलाक़ों में चलने वाले स्वास्थ्य केंद्रों पर मौजूद सुविधाओं का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार से नर्सों को सेफ्टी किट्स नहीं मिलती तो वे काम नहीं करेंगी.
कोरोना के संदिग्ध और संक्रमित मरीज़ों का इलाज करने के लिए सिर्फ नर्स ही नहीं डॉक्टर भी सेफ्टी किट्स की कमी से जूझ रहे हैं. दिल्ली स्थित एम्स के डॉक्टरों ने 16 मार्च को एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया को चिट्ठी लिखकर कहा था कि उनके पास पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट यानि खुद की रक्षा करने वाले उपकरण जैसे चश्मे, ग्लव्स और मास्क की किल्लत है. वीडियो देखिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है की देशभर के अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की भीषण कमी है. डॉक्टरों की कमी के चलते लोग मरीजों को प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करने से कतराते हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 5 हज़ार 335 ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 21,340 डॉक्टरों की ज़रूरत थी, लेकिन सिर्फ़ 3 हज़ार 881 ही डॉक्टर इन केंद्रों पर तैनात थे। यानि 17 हज़ार 459 डॉक्टरों की जगह अभी भी ख़ाली है। ऐसे एक केंद्र से लगभग 80 हज़ार से 1 लाख 20 हज़ार की आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिलता है। अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं की ज़मीनी हालात कितने ख़राब हैं। उत्तर प्रदेश की हालत सबसे ज़्यादा ख़राब है जहां सिर्फ 484 डॉक्टर्स सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात हैं और यहां 2 हज़ार 232 डॉक्टरों की कमी है।
कोरोना के संदिग्ध और संक्रमित मरीज़ों का इलाज करने के लिए सिर्फ नर्स ही नहीं डॉक्टर भी सेफ्टी किट्स की कमी से जूझ रहे हैं. दिल्ली स्थित एम्स के डॉक्टरों ने 16 मार्च को एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया को चिट्ठी लिखकर कहा था कि उनके पास पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट यानि खुद की रक्षा करने वाले उपकरण जैसे चश्मे, ग्लव्स और मास्क की किल्लत है. वीडियो देखिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है की देशभर के अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की भीषण कमी है. डॉक्टरों की कमी के चलते लोग मरीजों को प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करने से कतराते हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 5 हज़ार 335 ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 21,340 डॉक्टरों की ज़रूरत थी, लेकिन सिर्फ़ 3 हज़ार 881 ही डॉक्टर इन केंद्रों पर तैनात थे। यानि 17 हज़ार 459 डॉक्टरों की जगह अभी भी ख़ाली है। ऐसे एक केंद्र से लगभग 80 हज़ार से 1 लाख 20 हज़ार की आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिलता है। अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं की ज़मीनी हालात कितने ख़राब हैं। उत्तर प्रदेश की हालत सबसे ज़्यादा ख़राब है जहां सिर्फ 484 डॉक्टर्स सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात हैं और यहां 2 हज़ार 232 डॉक्टरों की कमी है।
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