नोटंबदी के आलोचक और जेएनयू के पूर्व छात्र अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबल मिला
भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को साल 2019 में अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार देने का ऐलान हुआ है. उन्हें यह पुरस्कार अर्थशास्त्री और उनकी पत्नी एस्टर डुफ्लो और सहयोगी माइकल क्रेमर के साथ संयुक्त रूप से दिया जाएगा.
अभिजीत बनर्जी ने अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता और एमए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली से किया. इसके बाद पीएचडी के लिए अभिजीत हार्वर्ड गए और फिलहाल अमेरिका के मैसाच्यूसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं. इससे पहले उन्होंने हार्वर्ड और प्रिंसटन यूनवर्सिटी में भी अध्यापन का काम किया है. अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्टर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र का नोबल वैश्विक ग़रीबी को कम करने की दिशा में किए जा रहे कामों के लिए दिया गया है. अभिजीत की पत्नी एस्टर डुफ्लो भी मैसाच्युसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर हैं. अभिजीत बनर्जी, एस्टर डुफ्लो और सेंथिल मुलईनाथन ने 2003 में वैश्विक ग़रीबी को कम करने के मक़सद से पावर्टी एक्शन लैब का गठन किया था. 2005 में इस थिंक टैंक को मैसाच्युसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ही पूर्व एल्युमनाई मुहम्मद अब्दुल लतीफ़ जमील ने आर्थिक सहयोग दिया जिसके बाद उनके पिता के सम्मान में थिंक टैंक का नाम बदलकर अब्दुल लतीफ़ जमील पावर्टी एक्शन लैब कर दिया गया. शेख़ अब्दुल लतीफ़ जमील सऊदी अरब के बड़े और सफल कारोबारियों में गिने जाते हैं. उनकी कंपनी फिलहाल दुनिया के 30 देशों में फैली हुई है और हज़ारों कर्मचारी अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट में फंसाने वाले नोटबंदी के फैसले को अभिजीत बनर्जी ने बेतुका क़रार दिया था. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुझे इस फ़ैसले में कोई गंभीर अर्थशास्त्र नज़र नहीं आता. जिस हड़बड़ी में मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू किया था, अभिजीत बनर्जी ने उसकी भी आलोचना की है.
58 साल के अभिजीत बनर्जी की पैदाइश कलकत्ता की है. उनकी मां निर्मला बनर्जी कलकत्ता के सेंटर फॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़ में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रह चुकी हैं जबकि पिता दीपक बनर्जी मशहूर प्रेसिडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख रह चुके हैं.BREAKING NEWS:
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 14, 2019
The 2019 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel has been awarded to Abhijit Banerjee, Esther Duflo and Michael Kremer “for their experimental approach to alleviating global poverty.”#NobelPrize pic.twitter.com/SuJfPoRe2N
अभिजीत बनर्जी ने अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता और एमए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली से किया. इसके बाद पीएचडी के लिए अभिजीत हार्वर्ड गए और फिलहाल अमेरिका के मैसाच्यूसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं. इससे पहले उन्होंने हार्वर्ड और प्रिंसटन यूनवर्सिटी में भी अध्यापन का काम किया है. अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्टर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र का नोबल वैश्विक ग़रीबी को कम करने की दिशा में किए जा रहे कामों के लिए दिया गया है. अभिजीत की पत्नी एस्टर डुफ्लो भी मैसाच्युसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर हैं. अभिजीत बनर्जी, एस्टर डुफ्लो और सेंथिल मुलईनाथन ने 2003 में वैश्विक ग़रीबी को कम करने के मक़सद से पावर्टी एक्शन लैब का गठन किया था. 2005 में इस थिंक टैंक को मैसाच्युसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ही पूर्व एल्युमनाई मुहम्मद अब्दुल लतीफ़ जमील ने आर्थिक सहयोग दिया जिसके बाद उनके पिता के सम्मान में थिंक टैंक का नाम बदलकर अब्दुल लतीफ़ जमील पावर्टी एक्शन लैब कर दिया गया. शेख़ अब्दुल लतीफ़ जमील सऊदी अरब के बड़े और सफल कारोबारियों में गिने जाते हैं. उनकी कंपनी फिलहाल दुनिया के 30 देशों में फैली हुई है और हज़ारों कर्मचारी अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट में फंसाने वाले नोटबंदी के फैसले को अभिजीत बनर्जी ने बेतुका क़रार दिया था. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुझे इस फ़ैसले में कोई गंभीर अर्थशास्त्र नज़र नहीं आता. जिस हड़बड़ी में मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू किया था, अभिजीत बनर्जी ने उसकी भी आलोचना की है.
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