भारत-पाकिस्तान पर हमले के बाद टिड्डियों के निशाने पर अफ्रीकी देश आए
भारत-पाकिस्तान में हमला करने वाले टिड्डियों का झुंड अब अफ्रीकी देशों की ओर बढ़ रहा है. हाल यह है कि सोमालिया और केन्या जैसे देशों में टिड्डियों से लड़के के लिए फौज की टुकड़ियां बनाकर ट्रेनिंग दी जा रही है.
टिड्डियों के आतंक से हुए फसलों के नुकसान का ब्यौरा जुटाने के लिए केंद्र सरकार की एक टीम ने राजस्थान के बाड़मेर ज़िले का दौरा किया है. बाड़मेर के डीएम अंशदीप के मुताबिक टिड्डियों का ये हमला अभी तक का सबसे खतरनाक हमला है. राज्य और केंद्र सरकार मिलकर ही इस आपदा से निबट सकते हैं.
बाड़मेर के बीजेपी चीफ आदूराम मेघवाल ने बताया कि टिड्डियों के आतंक से पश्चिमी राजस्थान में भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने रबी की फसल पर निर्भर रहने वाले बाड़मेर और जैसलमेर के किसानों के लिए मुआवज़े की मांग की. टिड्डियों के हमले से राजस्थान के अलावा पंजाब और गुजरात के किसान भी प्रभावित हुए हैं लेकिन यह किसी एक देश की चुनौती नहीं है. पड़ोसी देश पाकिस्तान में हाल इतना बुरा है कि यहां टिड्डियों के हमले को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया. अफ्रीकी देश सोमालिया में भी टिड्डियों का झुंड पूरी हरियाली चट कर गया और इनसे मुक़ाबला करने के लिए केन्या में एक अलग फ़ौज तैयार करके उसे ट्रेनिंग दी जा रही है। लाखों टन फसल चट कर जाने वाले टिड्डयों के प्रजनन के लिए गरम और सूखे इलाके सबसे मुफ़ीद होते हैं और इनमें मीलों की दूरी तय करने की क्षमता होती है. इनके औसत उम्र 90 दिन होती है और ये हर दिन अपने शरीर के वजन के बराबर खाना खा सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक टिड्डियों का एक बड़ा दल कम से कम 10 हाथियों या 25 जिराफों के बराबर फसल चट कर सकता है। टिड्डियों के हमले इतने भयावह होते हैं कि इनकी वजह से किसी देश में खाने के लाले पड़ सकते हैं और इससे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है. वीडियो देखिये टिड्डियों के झुंड अभी 70 किलोमीटर लंबे और 40 किलोमीटर चौड़े बताए जा रहे हैं और मई के बाद इनकी तादाद 500 गुनी बढ़ सकती है. आशंका है कि मई के बाद पूरा दक्षिणी-पूर्वी एशिया इनकी हमले की ज़द में आ सकता है। कहा जा रहा है कि साल दर साल बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के इकोसिस्टम में बदलाव आ रहे हैं और इसका असर टिड्डियों के हमले के रूप में भी दिख रहा है. साल 2017 में टिड्डियों का आतंक रूस में देखने मिला था, तब वहां के मछुआरों ने अपनी जाल में मछली के चारे के लिए टिड्डियों को जमा कर लिया था।
बाड़मेर के बीजेपी चीफ आदूराम मेघवाल ने बताया कि टिड्डियों के आतंक से पश्चिमी राजस्थान में भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने रबी की फसल पर निर्भर रहने वाले बाड़मेर और जैसलमेर के किसानों के लिए मुआवज़े की मांग की. टिड्डियों के हमले से राजस्थान के अलावा पंजाब और गुजरात के किसान भी प्रभावित हुए हैं लेकिन यह किसी एक देश की चुनौती नहीं है. पड़ोसी देश पाकिस्तान में हाल इतना बुरा है कि यहां टिड्डियों के हमले को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया. अफ्रीकी देश सोमालिया में भी टिड्डियों का झुंड पूरी हरियाली चट कर गया और इनसे मुक़ाबला करने के लिए केन्या में एक अलग फ़ौज तैयार करके उसे ट्रेनिंग दी जा रही है। लाखों टन फसल चट कर जाने वाले टिड्डयों के प्रजनन के लिए गरम और सूखे इलाके सबसे मुफ़ीद होते हैं और इनमें मीलों की दूरी तय करने की क्षमता होती है. इनके औसत उम्र 90 दिन होती है और ये हर दिन अपने शरीर के वजन के बराबर खाना खा सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक टिड्डियों का एक बड़ा दल कम से कम 10 हाथियों या 25 जिराफों के बराबर फसल चट कर सकता है। टिड्डियों के हमले इतने भयावह होते हैं कि इनकी वजह से किसी देश में खाने के लाले पड़ सकते हैं और इससे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है. वीडियो देखिये टिड्डियों के झुंड अभी 70 किलोमीटर लंबे और 40 किलोमीटर चौड़े बताए जा रहे हैं और मई के बाद इनकी तादाद 500 गुनी बढ़ सकती है. आशंका है कि मई के बाद पूरा दक्षिणी-पूर्वी एशिया इनकी हमले की ज़द में आ सकता है। कहा जा रहा है कि साल दर साल बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के इकोसिस्टम में बदलाव आ रहे हैं और इसका असर टिड्डियों के हमले के रूप में भी दिख रहा है. साल 2017 में टिड्डियों का आतंक रूस में देखने मिला था, तब वहां के मछुआरों ने अपनी जाल में मछली के चारे के लिए टिड्डियों को जमा कर लिया था।
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