स्मार्ट सिटी मिशन: कितना स्मार्ट हुआ शहर?
भारत सरकार ने जून 2015 में एक मिशन स्मार्ट सिटी लॉंच किया था। स्मार्ट सिटी मतलब कि स्मार्ट व्यवस्था। साफ-सुथरे शहर और लोगों के लिए बेहतर सुविधा मुहैया कराना इस मिशन का मकसद था। लेकिन बरसात के मौसम में स्मार्ट सिटी मिशन का नारा बेनामी दिखाई देता है।
मॉनसून के ज़ोर पकड़ते ही पूरे देश में स्मार्ट सिटी मिशन की पोल खुल गई है। शहरों में गंदगी है और पानी भरा हुआ है। मिशन को शुरू किये हुए चार साल गुज़र गए लेकिन अब तक किसी भी शहर को स्मार्ट होने का निशान दिखाई नहीं पड़ रहा है।
स्मार्ट सिटी वेबसाइट के मुताबिक 2030 तक 40 फीसदी आबादी को शहरों से जोड़ने और देश की जीडीपी में शहरों की हिस्सेदारी 75 फीसदी करने की है। फिलहाल देश की कुल आबादी का 34 आबादी फीसदी शहरों में रहते हैं और इसका 63 फीसदी देश की जीडीपी में योगदान है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत पांच सालों में 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का चार चरणों में चयनित किया गया, पहले चरण में 33 शहर, दूसरे चरण में 27 शहर, तीसरे चरण में 30 शहर और चौथे चरण में 9 शहरों को स्मार्ट बनाने के लिये चयन किया गया। लेकिन पांच सालों में सिटी को स्मार्ट बनाने की प्रक्रिया 30 फीसदी भी पूरी नहीं की गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 से 2019 के बीच 166.6 अरब रूपये आवंटित किये गए जिसमें से केवल 35.6 अरब रूपये ही खर्च किये जा सके हैं। यानि कुल रकम का 21 फीसदी। बता दें कि ये रकम शहर को स्मार्ट बनाने की राह में नहीं, बल्कि इस रकम का 80 फीसदी, शहरों के कुछ हिस्सों को दुरुस्त करने में लगाए गए। अब शहर पिछले पांच सालों में तो स्मार्ट नहीं हो पाया लेकिन अब सरकार ने 2023 तक इन 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का वादा किया है।
स्मार्ट सिटी वेबसाइट के मुताबिक 2030 तक 40 फीसदी आबादी को शहरों से जोड़ने और देश की जीडीपी में शहरों की हिस्सेदारी 75 फीसदी करने की है। फिलहाल देश की कुल आबादी का 34 आबादी फीसदी शहरों में रहते हैं और इसका 63 फीसदी देश की जीडीपी में योगदान है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत पांच सालों में 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का चार चरणों में चयनित किया गया, पहले चरण में 33 शहर, दूसरे चरण में 27 शहर, तीसरे चरण में 30 शहर और चौथे चरण में 9 शहरों को स्मार्ट बनाने के लिये चयन किया गया। लेकिन पांच सालों में सिटी को स्मार्ट बनाने की प्रक्रिया 30 फीसदी भी पूरी नहीं की गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 से 2019 के बीच 166.6 अरब रूपये आवंटित किये गए जिसमें से केवल 35.6 अरब रूपये ही खर्च किये जा सके हैं। यानि कुल रकम का 21 फीसदी। बता दें कि ये रकम शहर को स्मार्ट बनाने की राह में नहीं, बल्कि इस रकम का 80 फीसदी, शहरों के कुछ हिस्सों को दुरुस्त करने में लगाए गए। अब शहर पिछले पांच सालों में तो स्मार्ट नहीं हो पाया लेकिन अब सरकार ने 2023 तक इन 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का वादा किया है।
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