अरब देशों के साथ रिश्ते में कड़वाहट मोदी सरकार की नई मुसीबत

by Rahul Gautam 4 years ago Views 278478

Bitterness in relationship with Arab countries, Mo
देश में कोरोनावायरस की महामारी तेज़ी से फैल रही है लेकिन अल्पसंख्यक मुसलमानों को इसके लिए निशाना बनाया जा रहा है. वजह निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात का एक प्रोग्राम होना है जिसमें शामिल तक़रीबन चार हज़ार लोगों के बीच कोरोना का संक्रमण फैल गया.

इसके बाद देश और खाड़ी देशों में काम करने वाले तमाम लोगों ने सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक मुसलमानों पर हमले शुरू कर दिए जिसपर अरब मुमालिक के बाशिंदो ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.


इसे लेकर ट्विटर पर बाक़ायदा कैंपेन चलाया गया जिसमें उन लोगों को डीपोर्ट करने की मांग की गई जो अरब के देशों में रहते हुए अल्पसंख्यक मुसलमानों पर ऑनलाइन हमले कर रहे थे.

बात यहां तक बढ़ गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सफ़ाई देनी पड़ी कि कोरोनावायरस किसी धर्म जाति में भेदभाव नहीं करता और इसके खिलाफ मिलकर ही लड़ाई जीती जा सकती है. खाड़ी देशों में तैनात भारतीय राजनयिकों ने पीएम मोदी के इस बयान को रीट्वीट किया और लोगों से नफरत से दूर रहने की सलाह भी दी.

संसद के आंकड़े बताते हैं कि एक करोड़ से ज़्यादा भारतीय विदेशों में रह रहे हैं. इनमें से सात इस्लामिक देशों यूनाइटेडट अरब एमिरात, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, क़तर, बहरीन और मलेशिया में 83 लाख 72 हज़ार 333 भारतीय रोज़ी रोज़गार के लिए बसे हुए हैं.

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साल 2017 में इन भारतीयों ने 69 बिलियन डॉलर भारत भेजकर देश की अर्थव्यवस्था मजबूत की थी. इनमें सबसे ज्यादा 26.9 फीसदी रक़म यूनाइटेड अरब एमिरात से आई. इसके बाद अमरीका से 22.9 फीसदी, सऊदी अरब से 11.6 फीसदी, क़तर से 6.5, कुवैत से 5.5 फीसदी और ओमान से 3 फीसदी रक़म भारत भेजी गई. यानि कुल आकड़े का 76.4 फीसदी केवल इस्लामिक मुल्कों से आया. अगर अमेरिका को इससे निकाल दें तो भारत को बाहर से आने वाला आधा से ज़्यादा पैसा खाड़ी देशों से आता है.

ज़ाहिर है कि कोई भी देश नहीं चाहेगा कि उसके रिश्ते ऐसे मुल्कों से ख़राब हों जो उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं. सवाल यह है कि क्या कोरोनावायरस की महामारी में धर्म तलाशने वाले इसं समझ पाएंगे?

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