भारत-चीन सीमा विवाद: चाइनीज़ खाएं या न खाएं ?

by Darain Shahidi 3 years ago Views 5748

India China Border Tension: Should We Eat Chinese
सबसे पहले तो भारतीय सेना के उन जवानों को सलाम जिन्होंने देश की सीमा की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और पूरे देश में कोरोना से हज़ारों की तदाद में मरने वालों के लिए सामवेदनाएँ।

एक मंत्री जी हैं रामदास अठावले, महाराष्ट्र के हैं, पिछड़ों की राजनीति करते हैं। उनका कहना है कि जो रेस्टॉरेंट चाइनीज़ खाना बेचते हैं उन्हें बैन कर देना चाहिए। पहली बात तो ये की देश इस समय भयानक संकट से गुज़र रहा है। रेस्टॉरेंट तो पहले से ही बंद पड़े हैं बैन किसे करेंगे। और कर भी दिया तो इससे चीन का क्या नुक़सान होगा। चाइनीज नहीं खाने से चीन का क्या नुक़सान होगा।


रेस्टॉरेंट चलाने वाले भारतीय। खाना बनाने वाले भारतीय। बेचने वाले भारतीय ख़रीदने वाले भारतीय। इसमें चीन का क्या नुक़सान है। मोदी जी की कैबिनेट की शोभा बढ़ा रहे केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता, सोशल जस्टिस एंड एमवेरमेंट के मंत्री हैं। चाइनीज़ खाने पर पाबंदी वाले बयान के बाद कहा जा रहा है की मंत्री महोदय को सीरियसली ना लिया जाए। अब बताइए मिनिस्टर फ़ॉर सोशल जस्टिस एंड एंपवारमेंट को हम सीरियसली ना लें?

उधर चीन की सरकार समर्थित अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ ने एक विडियो ट्वीट किया है कि शंघाई में इंडियन रेस्टॉरेंट में ख़ूब गहमा-गहमी है और बक़ायदा कस्टमर्स ख़ूब मज़े से खाना खा रहे हैं। अगर चीन भी भारतीय खाने पर पाबंदी लगाने की बात कर दे तो उससे भारत का क्या नुक़सान हो जाएगा? अगर चीन का नुक़सान करना है और आर्थिक तौर पर करना है तो ये देखना होगा की हम चीन के साथ कितना व्यापार करते हैं और इससे किसको कितना फ़ायदा होता है।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग आपस में 18 बार मिल चुके हैं जबकि 70 सालों में नरेंद्र मोदी ही भारत के ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो पाँच बार चीन के दौरे पर गए हैं। लेकिन इतनी मुलाक़ातों के बावजूद सरहद पर दोनों देशों के बीच तनाव न सिर्फ़ बरक़रार है बल्कि उसमें बढ़ोतरी भी हुई है।

जहां तक चीन के साथ व्यापार का सवाल है तो चीन से आयात के अलावा भारत में चीन का कोई ख़ास निवेश नहीं हो पाया है। चीन ने 20 खरब अमरीकी डॉलर के निवेश के वादे में से सिर्फ़ एक खरब डॉलर का निवेश किया है। इस निवेश में स्टार्टअप्स कंपनियों में दो तिहाई निवेश हुआ है।

चीन की कंपनी अलीबाबा ने पेटीएम, बिग बास्केट और ज़ोमेटो में निवेश किया है जबकि दूसरी चीनी कंपनी टेनसेंट ने बायजू, फ़्लिपकार्ट और ओला जैसे स्टार्टअप्स में निवेश किया है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले पाँच सालों में चीन ने भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भी 876.73 अरब डॉलर का निवेश किया है। उसी तरह इलेक्ट्रिकल और सर्विस क्षेत्र में भी चीन ने निवेश किये हैं।

हालांकि जानकारों का कहना है कि चीन ने जो वादा किया और जो निवेश किया वो तुलनात्मक दृष्टि से काफ़ी कम है। तो आख़िरकार चीन ने खेल कहाँ किया है? चीन ने खेल ये किया है कि भारत को अपने सामान पर निर्भर बना दिया है। भारत ने चीन से बेतहाशा इम्पोर्ट किया है।

2014 से लेकर 2019 भारत ने चीन से समान आयात करने में रेकॉर्ड तोड़ दिया। 54 बिलियन डॉलर से ये 2018 में 76.87 बिलियन डॉलर पहुँच गया। 2019 में जनवरी से नवंबर तक का जो आँकड़ा है उसमें 68 बिल्यन डॉलर का सामान चीन ने भारत को बेच दिया।

भारत और चीन आपस में खुल के व्यापार कर रहे हैं लेकिन चीन हमें ज़्यादा बेच रहा है हमसे ख़रीद कम रहा है। पिछले तीन साल से औसतन हर साल 50 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है। मशीने जिसमें एलेक्ट्रोनिक्स मोबाइल, लैप्टॉप सब कुछ आते हैं। सबसे ज़्यादा हम चीन से ये आइटम ख़रीद रहे हैं।

इसके अलावा केमिकल प्रॉडक्ट्स, मेटल, टेक्स्टाइल, प्लास्टिक और रबर। भारत चीन को क्या बेचता है, मिनरल्ज़ एंड ऑयल, मेटल्स, केमिकल प्रॉडक्ट्स, प्रेशस मेटल्ज़ एंड डायमंड और टेक्स्टाइल्ज़।

बीएसएनएल और एमटीएनएल से कहा जाएगा कि 5-जी अपग्रेडेशन में चीनी कम्पनी के समान इस्तेमाल ना करें। ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन ने 500 आइम्स की लिस्ट जारी की है और कहा है कि इनका इम्पोर्ट बंद कर देना चाहिए। रेलवे ने चीनी कम्पनी को दिया गया 480 करोड़ का ठेका रद्द कर दिया है। ये वो क़दम हैं जिनसे चीन को झटका लग सकता है।

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