सर्विस ट्रेड में छह साल में भारत का सरप्लस आधे से भी कम हुआ
Information And Communications Technology के कारोबार को लेकर अमेरिका भारत से कई मांगें करता आया है. भारत यूज़र्स डेटा के लोकल स्टोरेज की नीति पर चल रहा है यानी देश के लोगों से जुड़ी जानकारियां देश से बाहर ना जाएं.
अमेरिकी कम्पनियों मास्टरकार्ड, वीज़ा और अमेज़न भारत की इस नीति के ख़िलाफ़ लॉबिंग कर रही हैं इसीलिए अमेरिका इसका विरोध कर रहा है. डेटा स्टोरेज के अलावा अमेरिका ये भी चाहता है कि भारत Information And Communications Technology यानी ICT के सामानों पर Import Duty या तो ख़त्म कर दे या फिर इसमें कटौती करे.
ICT के तहत जो चीज़ें अमेरिका, भारत को निर्यात करता है उनमें 10 हज़ार रुपये से ज़्यादा कीमत वाले मोबाइल फ़ोन्स, मोबाइल फ़ोन्स पार्ट, स्मार्ट वॉच, Telecom Network Equipments आदि शामिल हैं. इसके लिए दबाव बनाने के लिए अमेरिका ने इसी साल जून में Generalized System of Preference programme के तहत भारत को तरजीह के दर्जे को ख़त्म कर दिया था, जिससे भारत को हर साल 190 मिलियन डॉलर्स की बचत होती थी. वीडियो देखिये सर्विस ट्रेड के मामले में भारत का अमेरिका से कारोबार मुनाफ़े में रहा है लेकिन 2014 के बाद से इसमें लगातार गिरावट आती जा रही है. 2013 में भारत सर्विस ट्रेड में 7.1 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था, जो 2015 में गिरकर 6.1 बिलियन डॉलर रह गया. 2016 में ये 5.2 बिलियन डॉलर, 2017 में 4.4 बिलियन डॉलर और 2018 में ये 2014 के मुक़ाबले आधे से भी कम स्तर पर आ गया. 2018 में सर्विस ट्रेड में भारत का सरप्लस सिर्फ़ 3 बिलियन डॉलर रह गया. सर्विसेज़ के मामले में भारत का अमेरिका को निर्यात पिछले छह साल में बढ़ा तो है मगर आयात उससे कई गुना ज़्यादा बढ़ा है. 2013 में भारत का अमेरिका को निर्यात 20.4 बिलियन डॉलर था जो 2018 में बढ़कर 28.8 बिलियन डॉलर हो गया. उधर भारत का अमेरिका से आयात 2013 में 13.3 बिलियन डॉलर था जो 2018 में लगभग दोगुना होकर 25.8 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. भारत का अमेरिका से तेल का आयात लगभग तीन गुना हो चुका है, जल्द ही अमेरिकन कम्पनी लॉकहीड मार्टिन के साथ 15 बिलियन डॉलर के एयरक्राफ़्ट की डील भी होने वाली है, अगर भारत अमेरिका की ये शर्तें मान लेता है तो ट्रम्प की भारत के साथ व्यापार घाटे को ख़त्म करने की मंशा पूरी हो जाएगी.
ICT के तहत जो चीज़ें अमेरिका, भारत को निर्यात करता है उनमें 10 हज़ार रुपये से ज़्यादा कीमत वाले मोबाइल फ़ोन्स, मोबाइल फ़ोन्स पार्ट, स्मार्ट वॉच, Telecom Network Equipments आदि शामिल हैं. इसके लिए दबाव बनाने के लिए अमेरिका ने इसी साल जून में Generalized System of Preference programme के तहत भारत को तरजीह के दर्जे को ख़त्म कर दिया था, जिससे भारत को हर साल 190 मिलियन डॉलर्स की बचत होती थी. वीडियो देखिये सर्विस ट्रेड के मामले में भारत का अमेरिका से कारोबार मुनाफ़े में रहा है लेकिन 2014 के बाद से इसमें लगातार गिरावट आती जा रही है. 2013 में भारत सर्विस ट्रेड में 7.1 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था, जो 2015 में गिरकर 6.1 बिलियन डॉलर रह गया. 2016 में ये 5.2 बिलियन डॉलर, 2017 में 4.4 बिलियन डॉलर और 2018 में ये 2014 के मुक़ाबले आधे से भी कम स्तर पर आ गया. 2018 में सर्विस ट्रेड में भारत का सरप्लस सिर्फ़ 3 बिलियन डॉलर रह गया. सर्विसेज़ के मामले में भारत का अमेरिका को निर्यात पिछले छह साल में बढ़ा तो है मगर आयात उससे कई गुना ज़्यादा बढ़ा है. 2013 में भारत का अमेरिका को निर्यात 20.4 बिलियन डॉलर था जो 2018 में बढ़कर 28.8 बिलियन डॉलर हो गया. उधर भारत का अमेरिका से आयात 2013 में 13.3 बिलियन डॉलर था जो 2018 में लगभग दोगुना होकर 25.8 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. भारत का अमेरिका से तेल का आयात लगभग तीन गुना हो चुका है, जल्द ही अमेरिकन कम्पनी लॉकहीड मार्टिन के साथ 15 बिलियन डॉलर के एयरक्राफ़्ट की डील भी होने वाली है, अगर भारत अमेरिका की ये शर्तें मान लेता है तो ट्रम्प की भारत के साथ व्यापार घाटे को ख़त्म करने की मंशा पूरी हो जाएगी.
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