कारख़ानों पर लगते ताले अर्थव्यवस्था की सुस्ती के संकेत हैं
सरकारी आंकड़ों पर अगर नज़र डालें तो 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में कारखानों की संख्या में सिर्फ 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि इसमे कई उद्योग क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां कारख़ानों के खुलने की रफ़्तार में गिरावट दर्ज की गई है।
टेक्सटाइल यानि कपड़ा उद्योग के कारख़ानों में में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 4 फीसदी से ज्यादा फ़ैक्ट्रियां कम हुई हैं। कॉटन गिंनिंग, सीड प्रोसेसिंग की फैक्ट्री में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 3.7 फीसदी फ़ैक्ट्रियां बंद हुई हैं। ये दोनों ही कपड़ा उद्योग से जुड़े हैं जहां भारी रोज़गार मिलते हैं।
नमक उत्पादन के कारखानों में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 6.28 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. रिपेयर और मशीन इंस्टालेशन की फैक्ट्रियों में तीन साल में 1.3 फीसदी की गिरावट आई है। कोक और रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 1.64 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल प्रोडक्ट्स में भी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. साफ़ है कि देश के उद्योगों की रफ़्तार सुस्त है और इसकी रफ़्तार बाकी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार से कम है। खेती के बाद उद्योगों में ही लोगों को सबसे ज्यादा रोज़गार मिलते हैं। उद्योगों की इस हालत का असर रोज़गार के आंकड़ों में साफ़ दिखाई दे रहा है।
नमक उत्पादन के कारखानों में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 6.28 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. रिपेयर और मशीन इंस्टालेशन की फैक्ट्रियों में तीन साल में 1.3 फीसदी की गिरावट आई है। कोक और रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स में 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में 1.64 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल प्रोडक्ट्स में भी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. साफ़ है कि देश के उद्योगों की रफ़्तार सुस्त है और इसकी रफ़्तार बाकी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार से कम है। खेती के बाद उद्योगों में ही लोगों को सबसे ज्यादा रोज़गार मिलते हैं। उद्योगों की इस हालत का असर रोज़गार के आंकड़ों में साफ़ दिखाई दे रहा है।
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