पिछले पांच साल में गांवों में रहने वाले लोगों की आमदनी में भारी गिरावट
आर्थिक मंदी का असर शहरों से ज़्यादा गांवों में नज़र आने लगा है. इसके संकेत पिछले साल से मिलने लगे थे. जब FMCG सेक्टर यानी साबुन, तेल, शैम्पू और टूथपेस्ट जैसी चीज़ें बेचने वाली कम्पियों की सेल में गिरावट दर्ज हुई.
ये गिरावट सबसे ज़्यादा ग्रामीण भारत में देखने को मिली. इस गिरावट से बाबा रामदेव की पातंजलि जैसी कम्पनी भी नहीं बच पाई. हाल ही में आई SBI की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण इलाकों में हालात बेहद ख़राब हैं.
ARE WE EXAGGERATING THE CURRENT SLOWDOWN? के नाम से आई इस रिपोर्ट में Rural Wage Growth के पिछले दस साल आंकड़े दिए गए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2010 के बाद से Real Rural Wage Growth लगातार बढ़ रही थी. वित्त वर्ष 2010 मे लगभग 1 प्रतिशत से बढ़कर Real Rural Wage Growth वित्त वर्ष 2014 में बढ़कर 14.6 प्रतिशत हो गई लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है. वित्त वर्ष 2019 में ये ग्रोथ वापस 1 प्रतिशत पर आ गई. यही हाल नोमिनल Wage Growth का भी है. इससे साफ़ है कि मंदी का ज़्यादा असर गांवों पर दिख रहा है जहां किसानों की फ़सल की पूरी ख़रीद नहीं हो रही. गन्ने की फ़सल का भुगतान नहीं हो रहा और फ़सल के बीज, कीटनाशक, खाद और ट्रांसपोर्ट सब महंगा हो चुका है. जिसका पैसा किसानों को नकद चुकाना होता है, मगर उनकी फ़सल का पैसा अगर उन्हें मिलता भी है तो कई साल के इंतेज़ार के बाद सरकार को अगर वाकई अर्थव्यवस्था की चिंता है तो उसे ग्रामीण भारत की ख़रीदने की क्षमता को बढ़ाना होगा जो पिछले पांच साल से लगातार गिर रही है. वीडियो देखिये
ARE WE EXAGGERATING THE CURRENT SLOWDOWN? के नाम से आई इस रिपोर्ट में Rural Wage Growth के पिछले दस साल आंकड़े दिए गए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2010 के बाद से Real Rural Wage Growth लगातार बढ़ रही थी. वित्त वर्ष 2010 मे लगभग 1 प्रतिशत से बढ़कर Real Rural Wage Growth वित्त वर्ष 2014 में बढ़कर 14.6 प्रतिशत हो गई लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है. वित्त वर्ष 2019 में ये ग्रोथ वापस 1 प्रतिशत पर आ गई. यही हाल नोमिनल Wage Growth का भी है. इससे साफ़ है कि मंदी का ज़्यादा असर गांवों पर दिख रहा है जहां किसानों की फ़सल की पूरी ख़रीद नहीं हो रही. गन्ने की फ़सल का भुगतान नहीं हो रहा और फ़सल के बीज, कीटनाशक, खाद और ट्रांसपोर्ट सब महंगा हो चुका है. जिसका पैसा किसानों को नकद चुकाना होता है, मगर उनकी फ़सल का पैसा अगर उन्हें मिलता भी है तो कई साल के इंतेज़ार के बाद सरकार को अगर वाकई अर्थव्यवस्था की चिंता है तो उसे ग्रामीण भारत की ख़रीदने की क्षमता को बढ़ाना होगा जो पिछले पांच साल से लगातार गिर रही है. वीडियो देखिये
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