मोदी सरकार में अबतक पड़ोसी देशों से आए 4,135 लोगों को मिली भारत की नागरिकता
गृह मंत्रालय की ओर से राज्य सभा में पेश आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार ने पिछले 6 सालो में पडोसी देशो के 4,135 लोगो को भारत की नागरिकता दी है. सरकार बता चुकी है कि नागरिकता क़ानून में संशोधन होने के बाद भी महज़ 31 हज़ार लोगों को नागरिकता मिलने वाली है. ऐसे में एक विवादित क़ानून लाने पर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार के नागरिकों को भारत की नागरिकता देने का आंकड़ा संसद में पेश किया है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच अफ़ग़ानिस्तान के 914, पाकिस्तान के 2935, बांग्लादेश के 168, श्रीलंका के 113 और म्यांमार के 1 व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी गई है. इनके अलावा 2015 में भारत-बांग्लादेश भूमि समझौता के तहत 14,864 बांग्लादेशी मूल के लोगों को एक मुश्त नागरिकता दी गई थी.
यानी पिछले छह सालों में मोदी सरकार ने पड़ोसी देशों के 4135 लोगों को नागरिकता दी है. कहा जा रहा है कि ज़्यादातर नागरिकता उन लोगों को दी गई है जो धार्मिक पहचान के कारण अपने देशों में उत्पीड़न का शिकार हो रहे थे. हालांकि मंत्रालय ने इन नागरिकों का धर्मवार आंकड़ा जारी नहीं किया. इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की नागरिकता पाने वाले पड़ोसी देशों के लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है. और मोदी सरकार बिना कोई क़ानून लाए इन्हें आसानी से नागरिकता दे रही थी. एक अनुमान के मुताबिक नया क़ानून बनने के बाद तक़रीबन 31 हज़ार लोगों को फौरी फायदा होगा. यह वही लोग हैं जो 31 दिसंबर 2014 से पहले अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत में आ चुके है. सवाल यह है कि महज़ कुछ हज़ार लोगों को नागरिकता देने के लिए क़ानून बनाने की बजाय सरकार क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं निकाल सकती थी ताकि देश को प्रदर्शनों और हंगामों से बचाया जा सकता था.
यानी पिछले छह सालों में मोदी सरकार ने पड़ोसी देशों के 4135 लोगों को नागरिकता दी है. कहा जा रहा है कि ज़्यादातर नागरिकता उन लोगों को दी गई है जो धार्मिक पहचान के कारण अपने देशों में उत्पीड़न का शिकार हो रहे थे. हालांकि मंत्रालय ने इन नागरिकों का धर्मवार आंकड़ा जारी नहीं किया. इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की नागरिकता पाने वाले पड़ोसी देशों के लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है. और मोदी सरकार बिना कोई क़ानून लाए इन्हें आसानी से नागरिकता दे रही थी. एक अनुमान के मुताबिक नया क़ानून बनने के बाद तक़रीबन 31 हज़ार लोगों को फौरी फायदा होगा. यह वही लोग हैं जो 31 दिसंबर 2014 से पहले अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत में आ चुके है. सवाल यह है कि महज़ कुछ हज़ार लोगों को नागरिकता देने के लिए क़ानून बनाने की बजाय सरकार क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं निकाल सकती थी ताकि देश को प्रदर्शनों और हंगामों से बचाया जा सकता था.
Latest Videos