जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्लाह का ऐलान, एक कमज़ोर सदन का हिस्सा बनना मंज़ूर नहीं
जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म हुए लगभग एक साल पूरा होने वाला है. केंद्रीय सत्ता पर काबिज़ बीजेपी ने संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में महज़ एक दिन के भीतर यह दर्जा ख़त्म कर दिया था. तारीख़ थी 5 अगस्त 2019. यही वो दिन था जब जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता को लेकर उसके लोगों से 70 साल पहले किए गए वादों को एक झटके में तोड़ दिया गया. यह कहना है जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह का.
तक़रीबन आठ महीने की नज़रबंदी काटकर बाहर आए उमर अब्दुल्लाह ने अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में जम्मू-कश्मीर के अधिकारों को ख़त्म करने पर अपना नज़रिया लिखा है. उन्होंने लिखा कि पीएम मोदी के दोबारा सत्ता में आने के बाद ऐसी अफ़वाहें तेज़ हो गई थीं कि लोकसभा में अपने बहुमत के दम पर बीजेपी अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को संविधान से हटा सकती है. अगस्त के महीने में यह डर सच्चाई में बदल गया जब पैरामिलिट्री जवानों से भरे हवाई जहाज़ श्रीनगर के आसमान में मंडराने लगे और देखते ही देखते पूरे राज्य में फैल गए.
उस वक़्त जम्मू-कश्मीर की आवाम का साथ उस शख़्स ने भी नहीं दिया जो शीर्ष संवैधानिक पद पर काबिज़ था. उमर अब्दुल्लाह ने बिना नाम लिए लिखा कि तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अफ़वाहों को ख़ारिज करते हुए भरोसा दिलाया कि राज्य के विशेष दर्जे को कोई ख़तरा नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात किया जा रहा है. इसका यही मतलब है कि शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठे शख़्स ने जम्मू-कश्मीर की आवाम से झूठ बोला या फिर राज्य के टुकड़े-टुकड़े किए जाने वाले फ़ैसले के बारे में उसे मालूम ही नहीं था. अब्दुल्लाह ने यह भी कहा कि 5 अगस्त 2019 के ठीक पहले उनकी पार्टी के एक डेलिगेशन ने पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी. यह एक ना भूलने वाली मुलाक़ात है जिसके बारे में शायद मैं कभी लिखूंगा. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अगले 72 में क्या होने वाला था, इस मुलाक़ात में इसका बिल्कुल भी आभास नहीं होने दिया गया. भारत सरकार के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय में उसका विशेष दर्जा महत्वपूर्ण था, जिसे मिटा दिया गया. सबसे ज़्यादा अपमानित करने वाला फ़ैसला तो यह था कि जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया. पिछले सात दशकों में केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यों में बदला गया लेकिन सात दशक में पहली बार एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया. राज्य के लोगों को अपमानित करने और सज़ा देने के अलावा इस फैसले का मतलब आजतक समझ नहीं आया है. अगर बौद्ध आबादी की मांग पर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तो जम्मू के लोगों की यही मांग उससे पुरानी है. अगर यह फैसला धार्मिक आधार पर किया गया तो इस सच को नज़रअंदाज़ किया गया कि लेह और कारगिल ज़िले मुस्लिम बहुल हैं. कारगिल के लोगों ने तो लद्दाख़ को जम्मू-कश्मीर से काटने का खुलेआम विरोध किया. अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने की बहुत सारी वजहें गिनाई गईं जो तथ्यों पर खरे नहीं उतरते. कहा गया कि अनुच्छेद 370 की वजह से अलगाववाद और चरमपंथ को बढ़ाया है. इस फैसले से घाटी में आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा. अगर ऐसा है तो एक साल बाद भी उसी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में क्यों कहना पड़ा कि घाटी में हिंसा बढ़ रही है. इस फैसले को ग़रीबी दूर करने वाला बताया गया लेकिन यहां ग़रीबी का स्तर सबसे कम ग़रीब राज्यों के जैसा है. कहा गया कि इस फैसले से चरमपंथ ख़त्म होगा और निवेश बढ़ेगा लेकिन जम्मू-कश्मीर उन चुनिंदा राज्यों में शुमार था जहां औद्योगिक क्षेत्र बढ़ रहा था और निर्माण के क्षेत्र में शानदार निवेश हो रहा था. सुरक्षित माहौल बना देने के बाद भी पर्यटन के क्षेत्र में निवेश क्यों नहीं हो रहा है. मानव विकास के सूचकांक में जम्मू-कश्मीर कथिततौर पर विकसित राज्य गुजरात से काफी बेहतर है. इस तरह के तमाम तथ्य और तर्क देते हुए उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि वो इस फैसले का विरोध करते रहेंगे और सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी लड़ाई जारी रहेगी. उन्होंने यह भी ऐलान किया कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, तब तक वो चुनाव नहीं लड़ेंगे. सबसे ताक़तवर विधानसभा का सदस्य होने और सात साल तक इसका नेता होने के नाते उन्हें अब एक कमज़ोर कर दिए गए सदन का हिस्सा बनना मंज़ूर नहीं है.
उस वक़्त जम्मू-कश्मीर की आवाम का साथ उस शख़्स ने भी नहीं दिया जो शीर्ष संवैधानिक पद पर काबिज़ था. उमर अब्दुल्लाह ने बिना नाम लिए लिखा कि तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अफ़वाहों को ख़ारिज करते हुए भरोसा दिलाया कि राज्य के विशेष दर्जे को कोई ख़तरा नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात किया जा रहा है. इसका यही मतलब है कि शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठे शख़्स ने जम्मू-कश्मीर की आवाम से झूठ बोला या फिर राज्य के टुकड़े-टुकड़े किए जाने वाले फ़ैसले के बारे में उसे मालूम ही नहीं था. अब्दुल्लाह ने यह भी कहा कि 5 अगस्त 2019 के ठीक पहले उनकी पार्टी के एक डेलिगेशन ने पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी. यह एक ना भूलने वाली मुलाक़ात है जिसके बारे में शायद मैं कभी लिखूंगा. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अगले 72 में क्या होने वाला था, इस मुलाक़ात में इसका बिल्कुल भी आभास नहीं होने दिया गया. भारत सरकार के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय में उसका विशेष दर्जा महत्वपूर्ण था, जिसे मिटा दिया गया. सबसे ज़्यादा अपमानित करने वाला फ़ैसला तो यह था कि जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया. पिछले सात दशकों में केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यों में बदला गया लेकिन सात दशक में पहली बार एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया. राज्य के लोगों को अपमानित करने और सज़ा देने के अलावा इस फैसले का मतलब आजतक समझ नहीं आया है. अगर बौद्ध आबादी की मांग पर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तो जम्मू के लोगों की यही मांग उससे पुरानी है. अगर यह फैसला धार्मिक आधार पर किया गया तो इस सच को नज़रअंदाज़ किया गया कि लेह और कारगिल ज़िले मुस्लिम बहुल हैं. कारगिल के लोगों ने तो लद्दाख़ को जम्मू-कश्मीर से काटने का खुलेआम विरोध किया. अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने की बहुत सारी वजहें गिनाई गईं जो तथ्यों पर खरे नहीं उतरते. कहा गया कि अनुच्छेद 370 की वजह से अलगाववाद और चरमपंथ को बढ़ाया है. इस फैसले से घाटी में आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा. अगर ऐसा है तो एक साल बाद भी उसी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में क्यों कहना पड़ा कि घाटी में हिंसा बढ़ रही है. इस फैसले को ग़रीबी दूर करने वाला बताया गया लेकिन यहां ग़रीबी का स्तर सबसे कम ग़रीब राज्यों के जैसा है. कहा गया कि इस फैसले से चरमपंथ ख़त्म होगा और निवेश बढ़ेगा लेकिन जम्मू-कश्मीर उन चुनिंदा राज्यों में शुमार था जहां औद्योगिक क्षेत्र बढ़ रहा था और निर्माण के क्षेत्र में शानदार निवेश हो रहा था. सुरक्षित माहौल बना देने के बाद भी पर्यटन के क्षेत्र में निवेश क्यों नहीं हो रहा है. मानव विकास के सूचकांक में जम्मू-कश्मीर कथिततौर पर विकसित राज्य गुजरात से काफी बेहतर है. इस तरह के तमाम तथ्य और तर्क देते हुए उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि वो इस फैसले का विरोध करते रहेंगे और सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी लड़ाई जारी रहेगी. उन्होंने यह भी ऐलान किया कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, तब तक वो चुनाव नहीं लड़ेंगे. सबसे ताक़तवर विधानसभा का सदस्य होने और सात साल तक इसका नेता होने के नाते उन्हें अब एक कमज़ोर कर दिए गए सदन का हिस्सा बनना मंज़ूर नहीं है.
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