हाइटेक दिल्ली पुलिस क्या दंगाइयों के सामने मजबूर?
राजधानी दिल्ली की उत्तर पूर्वी हिस्सा तीन से लगातार हिंसा और आगज़नी की चपेट में है. दिल्ली पुलिस बार-बार दावा कर रही है कि हालात क़ाबू में हैं लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त इसके उलट है. रविवार से शुरू हुई हिंसा के बाद सोमवार को एक पुलिस कांस्टेबल सहित 7 लोगों की जान जा चुकी है. मंगलवार को भी कुछ हिस्सों में पथराव और आगज़नी के मामले सामने आए. ऐसा तब है जब दिल्ली पुलिस देश की हाइटेक पुलिस मानी जाती है. दूसरे राज्यों की पुलिस के मुक़ाबले वो काफी मज़बूत स्थिति में है.
राजधानी के उत्तर पूर्वी ज़िले में तीन दिन से लगातार जारी हिंसा के बीच दिल्ली पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है. सोशल मीडिया पर वायरल तमाम वीडियो में दिल्ली पुलिस के जवान उन लोगों के साथ दिख रहे हैं जो हिंसा करने वालों में शामिल हैं. दिल्ली पुलिस दंगाइयों के सामने तमाशबीन क्यों बनी रही, हत्या, आगज़नी, लूटपाट को रोक पाने में नाकाम क्यों रही, यह सवाल बार-बार उठ रहे हैं.
दिल्ली की आबादी ढाई करोड़ से ज़्यादा है लेकिन बजट के मामले में दिल्ली पुलिस से ऊपर सिर्फ उत्तर प्रदेश पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस ही आगे है. यानी आर्थिक मामलों में दिल्ली पुलिस दूसरे राज्यों से बेहतर हालत में है. साल 2018-19 में दिल्ली पुलिस का बजट 7858 करोड़ था जबकि यूपी पुलिस का बजट 18 हज़ार 145 करोड़ और महाराष्ट्र पुलिस का बजट 13 हज़ार 708 करोड़ रुपए था। आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश की एक लाख की आबादी पर 198 पुलिसवाले तैनात हैं लेकिन दिल्ली में एक लाख की आबादी की सुरक्षा के लिए 401 पुलिसवाले तैनात हैं. तकनीकी सुविधाओं के मामले में भी दिल्ली पुलिस अन्य राज्यों के मुक़ाबले ज़्यादा चुस्त दुरुस्त है. दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के लिए 5332 सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं जबकि सर्वाधिक आबादी वाले प्रदेश यूपी में महज़ 2134 कैमरों से काम चलाया जा रहा है. ख़ुफ़िया इनपुट जुटाने में भी दिल्ली पुलिस अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफी पेशेवर है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच में 722 पुलिस अफसरों की तैनाती है लेकिन यहां ख़ुफ़िया विंग में 965 पुलिसवाले शामिल हैं. इसके बावजूद दिल्ली पुलिस की ख़ुफ़िया विंग हिंसा का अलर्ट जारी कर पाने में फिसड्डी साबित हुई. 3 तीन से राजधानी का एक हिस्सा जल रहा है. अब तक एक पुलिसकर्मी समेत सात लोगों की मौत हो चुकी है और दिल्ली पुलिस पूरी तरह बैकफुट पर है.
राजधानी के उत्तर पूर्वी ज़िले में तीन दिन से लगातार जारी हिंसा के बीच दिल्ली पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है. सोशल मीडिया पर वायरल तमाम वीडियो में दिल्ली पुलिस के जवान उन लोगों के साथ दिख रहे हैं जो हिंसा करने वालों में शामिल हैं. दिल्ली पुलिस दंगाइयों के सामने तमाशबीन क्यों बनी रही, हत्या, आगज़नी, लूटपाट को रोक पाने में नाकाम क्यों रही, यह सवाल बार-बार उठ रहे हैं.
दिल्ली की आबादी ढाई करोड़ से ज़्यादा है लेकिन बजट के मामले में दिल्ली पुलिस से ऊपर सिर्फ उत्तर प्रदेश पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस ही आगे है. यानी आर्थिक मामलों में दिल्ली पुलिस दूसरे राज्यों से बेहतर हालत में है. साल 2018-19 में दिल्ली पुलिस का बजट 7858 करोड़ था जबकि यूपी पुलिस का बजट 18 हज़ार 145 करोड़ और महाराष्ट्र पुलिस का बजट 13 हज़ार 708 करोड़ रुपए था। आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश की एक लाख की आबादी पर 198 पुलिसवाले तैनात हैं लेकिन दिल्ली में एक लाख की आबादी की सुरक्षा के लिए 401 पुलिसवाले तैनात हैं. तकनीकी सुविधाओं के मामले में भी दिल्ली पुलिस अन्य राज्यों के मुक़ाबले ज़्यादा चुस्त दुरुस्त है. दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के लिए 5332 सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं जबकि सर्वाधिक आबादी वाले प्रदेश यूपी में महज़ 2134 कैमरों से काम चलाया जा रहा है. ख़ुफ़िया इनपुट जुटाने में भी दिल्ली पुलिस अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफी पेशेवर है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच में 722 पुलिस अफसरों की तैनाती है लेकिन यहां ख़ुफ़िया विंग में 965 पुलिसवाले शामिल हैं. इसके बावजूद दिल्ली पुलिस की ख़ुफ़िया विंग हिंसा का अलर्ट जारी कर पाने में फिसड्डी साबित हुई. 3 तीन से राजधानी का एक हिस्सा जल रहा है. अब तक एक पुलिसकर्मी समेत सात लोगों की मौत हो चुकी है और दिल्ली पुलिस पूरी तरह बैकफुट पर है.
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