जानें किन-किन नेताओं ने नागरिकता क़ानून पर बदले सुर

by Rahul Gautam 4 years ago Views 3930

Know who has taken U-turn on citizenship law
धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले विवादित कानून को बीजेपी के जिन सहयोगी दलों ने संसद में समर्थन दिया था, अब सड़कों पर जारी विरोध प्रदर्शनों के चलते अपने सुर बदल रहे हैं। उत्तर पूर्व के राज्यों से लेकर पंजाब तक इस क़ानून पर बीजेपी के सहयोगी दलों में बग़ावत साफ़ हो गई है.

नागरिकता क़ानून पर समर्थन जुटाने के लिए पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं लेकिन यह क़ानून केंद्र सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है. बीजेपी के जिन सहयोगी दलों ने संसद में इस क़ानून का समर्थन किया था, उनमें से कइयों ने अब यूटर्न ले लिया है.


पूर्वोत्तर में नगालैंड पीपुल्स फ्रंट के एक मात्र राज्यसभा सदस्य केजी केन्ये संसद में इस बिल के पक्ष में वोटिंग की थी. अब एनपीएफ ने सांसद केजी केन्ये पर बड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से बर्ख़ास्त कर दिया है. एनपीपी इस क़ानून का विरोध कर रही है और पूर्वोत्तर में बांग्लादेशियों बसाने का विरोध कर रही है चाहे वो किसी भी धर्म के हों.

पूर्वोत्तर में असम गण परिषद ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है. एजीपी असमिया राजनीती की धुरी कही जाती है और संसद में वोटिंग करने के बाद इस कानून का जमकर विरोध कर रही है। यहा तक कि इस कानून को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी है. इसी तरह बिहार में पार्टी महासचिव पवन वर्मा और उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के विरोध के बाद जेडीयू ने सीएए एनआरसी से पल्ला झाड़ लिया है. प्रशांत किशोर ने यह भी कहा है कि कि बिहार में नागरिकता संशोधन कानून बिलकुल लागू नहीं होगा। दोनों नेताओं के इस बग़ावती सुर पर सीएम नीतीश कुमार की चुप्पी बताती है कि उन्होंने इस मुद्दे पर अपने नेताओं को मौन समर्थन दे रखा है.

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तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी AIADMK ने इस क़ानून के पास होने में अहम भूमिका निभाई थी. पार्टी ने 11 सांसदों ने इस क़ानून के पक्ष में वोटिंग की थी और बिल राज्यसभा में आसानी से पास हो गया था. मगर अब AIADMK ने इस क़ानून पर सवाल उठाना शुरू कर दिए हैं. पार्टी नागरिकता कानून में तमिल शरणार्थिओं को भी शामिल करने की मांग कर रही है। पार्टी नेताओं ने साफ़ किया है कि वो इस मुद्दे पर सरकार के चर्चा करेंगे. इसी तरह बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने भी इस क़ानून पर सवाल उठाए हैं. एलजेपी प्रमुख चिराग़ पासवान ने कहा कि देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों से साफ़ है कि सरकार समाज के एक बड़े हिस्से को विश्वास में ले पाने में नाक़ाम हो गई है.

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