CAA-NRC के ख़िलाफ़ भूमिहीन दलितों ने किया आंदोलन तेज़
विवादित नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ अब भूमिहीन दलितों ने भी आंदोलन तेज़ कर दिया है. हुबली में सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उनके पास दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ नहीं है, ऐसे में सरकार पुरखों के कागज़ात दिखाने वाला क़ानून कैसे बना सकती है.
देशभर में विवादित नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर है. इस आंदोलन में अब कर्नाटक के सफाई कर्मचारियों के संगठन भी कूद पड़े हैं. कर्नाटक के हुबली में सड़कों पर उतरे सफाई कर्मचारियों ने कहा कि यह क़ानून उनके ख़िलाफ़ है और इससे उनका वजूद ख़तरे में पड़ जाएगा.
इस प्रदर्शन में शामिल ज़्यादातर सफाई कर्मचारी दलित समुदाय के भूमिहीन मज़दूर हैं जो रोज़ीरोटी की तलाश में पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से वर्षों पहले हुबली आए थे. इन्होंने कहा कि ग़ुरबत और अशिक्षा के चलते इन्हें सालों पहले अपने गांव छोड़कर हुबली आना पड़ा था. ज्यादातर सफाई कर्मचारियों के पास गांव में ज़मीन नहीं होने के चलते ज़मीन से जुड़े कागज़ात नहीं है। इन्होंने सवाल पूछा कि वर्षों बाद अब ये वे अपने पुरखों से जुड़े कागज़ात कहा से लाएंगे और सरकार के सामने अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे. प्रदर्शनकारियों ने इस रैली की शुरुआत अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले कन्नड़ योद्धा संगोल्ली रायन्ना की मूर्ति के नीचे खड़े होकर शुरू की जो हुबली शहर में लगी हुई है. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने ज़िला प्रशासन को एक ज्ञापन दिया और इस कानून को वापस लेने की मांग की. वीडियो देखिये कर्नाटक में गठित संविधान सुरक्षा समिति ने भी सफ़ाई कर्मचारियों के इस प्रदर्शन का समर्थन किया है. समिति ने पूछा कि जिस देश में इस क़दर गरीबी है कि लोगों के पास खाने के लिए रोटी नहीं है और रहने के लिए छत नहीं है, वे ज़मीन और जन्म से जुड़े कागज़ कहां से लाएंगे. नागरिकता क़ानून विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े लोगों का साफ कहना है कि इस कानून की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी दलितों, भूमिहीन मजदूरों और ग़रीबों को होगी।
इस प्रदर्शन में शामिल ज़्यादातर सफाई कर्मचारी दलित समुदाय के भूमिहीन मज़दूर हैं जो रोज़ीरोटी की तलाश में पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से वर्षों पहले हुबली आए थे. इन्होंने कहा कि ग़ुरबत और अशिक्षा के चलते इन्हें सालों पहले अपने गांव छोड़कर हुबली आना पड़ा था. ज्यादातर सफाई कर्मचारियों के पास गांव में ज़मीन नहीं होने के चलते ज़मीन से जुड़े कागज़ात नहीं है। इन्होंने सवाल पूछा कि वर्षों बाद अब ये वे अपने पुरखों से जुड़े कागज़ात कहा से लाएंगे और सरकार के सामने अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे. प्रदर्शनकारियों ने इस रैली की शुरुआत अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले कन्नड़ योद्धा संगोल्ली रायन्ना की मूर्ति के नीचे खड़े होकर शुरू की जो हुबली शहर में लगी हुई है. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने ज़िला प्रशासन को एक ज्ञापन दिया और इस कानून को वापस लेने की मांग की. वीडियो देखिये कर्नाटक में गठित संविधान सुरक्षा समिति ने भी सफ़ाई कर्मचारियों के इस प्रदर्शन का समर्थन किया है. समिति ने पूछा कि जिस देश में इस क़दर गरीबी है कि लोगों के पास खाने के लिए रोटी नहीं है और रहने के लिए छत नहीं है, वे ज़मीन और जन्म से जुड़े कागज़ कहां से लाएंगे. नागरिकता क़ानून विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े लोगों का साफ कहना है कि इस कानून की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी दलितों, भूमिहीन मजदूरों और ग़रीबों को होगी।
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