'ड्रिंकिंग वॉटर टेक्नोलॉजी' बारिश के पानी को शुद्ध बनाने की नई तकनीक
साल-दर-साल घटते ग्राउंड वॉटर लेवल ने नई तकनीकों को जन्म दिया है। महाराष्ट्र के सतारा में निम्बाकर एग्रिकल्चरल इंस्टीट्यूट ने बारिश के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए ऐसी तकनीक ईजाद की है जो बारिश के पानी को साफ कर देता है।
इस तकनीक के तहत पहले बारिश के पानी को एक टैंक में इकट्ठा किया जाता है, फिर पानी की सफाई की जाती है और आखिर में सोलर हीटिंग का इस्तेमाल कर पानी में मौजूद माइक्रोबायोलॉजिकल कंटेनमेंट्स को निकाल दिया जाता है.
इस नई तकनीक से बिना बिजली और महंगी मशीनों के बारिश का पानी पीने लायक़ बनाना आसान है। ग्राउंड वॉटर की तुलना में बारिश के पानी में नमक और नुकसानदेह केमिकल आर्सेनिक मौजूद नहीं होता। हालांकि बारिश का पानी जब ज़मीन पर गिरता है तो दूषित हो जाता है जिसकी वजह से पानी का रंग भूरा हो जाता है। इस पानी में एलम (Alum) केमिकल मिलाकर इसकी सफाई की जा सकती है। वीडियो देखिए आमतौर पर एक लीटर पानी में 20 एमजी एलम की ज़रूरत पड़ती है। पानी में एलम मिलाने से पानी में मौजूद कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया भी मर जाता है जिससे सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता। बता दें कि देश कि 66 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और इनमें 85 फीसदी आबादी पीने के लिए ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल करती है। सालाना तकरीबन 230 किमी क्यूब ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि धीरे-धीरे ग्राउंड वॉटर का लेवल नीचे जा रहा है जो आने वाले दिनों के लिए समस्या समस्या का संकेत है। इसके अलावा देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहां पानी में भारी मात्रा में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन और आर्सेनिक मौजूद है जो सेहत के लिए नुकसानदेह है। साथ ही आज के दिनों में पानी की सफाई के लिए कई मशीनें मार्केट में मौजूद हैं जो सिर्फ बिजली से चलती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी आबादी तक बिजली और मशीनों की पहुंच नहीं है। यही नहीं आमतौर पर पानी में मौजूद कॉलिफॉर्म्स बैक्टीरिया की सफाई के लिए क्लोरिनेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं।
इस नई तकनीक से बिना बिजली और महंगी मशीनों के बारिश का पानी पीने लायक़ बनाना आसान है। ग्राउंड वॉटर की तुलना में बारिश के पानी में नमक और नुकसानदेह केमिकल आर्सेनिक मौजूद नहीं होता। हालांकि बारिश का पानी जब ज़मीन पर गिरता है तो दूषित हो जाता है जिसकी वजह से पानी का रंग भूरा हो जाता है। इस पानी में एलम (Alum) केमिकल मिलाकर इसकी सफाई की जा सकती है। वीडियो देखिए आमतौर पर एक लीटर पानी में 20 एमजी एलम की ज़रूरत पड़ती है। पानी में एलम मिलाने से पानी में मौजूद कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया भी मर जाता है जिससे सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता। बता दें कि देश कि 66 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और इनमें 85 फीसदी आबादी पीने के लिए ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल करती है। सालाना तकरीबन 230 किमी क्यूब ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि धीरे-धीरे ग्राउंड वॉटर का लेवल नीचे जा रहा है जो आने वाले दिनों के लिए समस्या समस्या का संकेत है। इसके अलावा देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहां पानी में भारी मात्रा में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन और आर्सेनिक मौजूद है जो सेहत के लिए नुकसानदेह है। साथ ही आज के दिनों में पानी की सफाई के लिए कई मशीनें मार्केट में मौजूद हैं जो सिर्फ बिजली से चलती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी आबादी तक बिजली और मशीनों की पहुंच नहीं है। यही नहीं आमतौर पर पानी में मौजूद कॉलिफॉर्म्स बैक्टीरिया की सफाई के लिए क्लोरिनेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं।
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