मज़दूरों के लिए मरहम साबित हुआ मनरेगा, चार महीने में 72 फ़ीसदी फंड ख़र्च

by Ankush Choubey 3 years ago Views 1812

MGNREGA proved to be the ointment for the workers,
27 फ़रवरी 2015 को लोकसभा में पीएम मोदी ने कांग्रेस पर तंज़ करते हुए नरेगा को कांग्रेस की नाकामी का जीता जागता स्मारक बताकर मज़ाक उड़ाया था. मगर कोरोना महामारी के संकट के दौरान मोदी सरकार ने मज़दूरों को मदद पहुंचाने के लिए अगर किसी योजना का सबसे ज्यादा सहारा लिया तो वह मनरेगा ही है. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में ही मनरेगा के इस साल के बजट का 72 फीसदी तक फंड ख़र्च कर दिया गया है.

मनरेगा के लिए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 1 लाख 22 हज़ार 398.43 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे. सरकार ने इस साल की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून तक 87 हज़ार 611.41 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं जबकि पिछले तीन सालों में सरकार पहली तिमाही में कुल फंड का महज़ 39 फीसदी तक खर्च करती आ रही थी. आंकड़े बताते हैं कि साल 2019-20 की पहली तिमाही में कुल आवंटन का 29 फीसदी, 2018-19 की पहली तिमाही में 39 फीसदी और 2017-18 की पहली तिमाही में 32 फीसदी फंड ही खर्च किया था.


आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में 1 अप्रैल से अगस्त 4 के बीच 5 करोड़ 36 लाख परिवारों को मनरेगा के तहत काम मिला जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में पूरे साल में 5 करोड़ 48 लाख परिवारों को काम मिला था. आंकड़े बताते हैं कि साल 2013-14 से पूरे साल भर में जितना काम मनरेगा के तहत नहीं जुटाया जा सका, इस साल महज़ चार महीनों में उतने परिवारों को काम मिला. इसकी वजह कोरोना महामारी के चलते बेरोज़गारी में बेतहाशा बढ़ोतरी और बढ़ती ग़रीबी है.

केंद्र सरकार का लक्ष्य था कि चालू वित्त वर्ष में 280 करोड़ 65 लाख दिनों का काम मनरेगा के तहत लोगों को दिया जाएगा लेकिन शुरुआती चार महीने में ही 163 करोड़ दिनों का काम लोगों को दिया जा चुका है जो कुल लक्ष्य का 58 फ़ीसदी से ज़्यादा है. फिलहाल इस योजना के तहत प्रति व्यक्ति 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी होती है और महामारी के दौर में राहुल गांधी बार-बार इसे 200 दिन तक बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं.

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