कोरोना वायरस: अमीर का रोग ग़रीबों के घर
आधिकारिक तौर पर देश की सरकार ने उन ज़िलों की सूची बंद कर दी है जहां सबसे ज़्यादा ग़रीबी है। देश के 110 से ज़्यादा ज़िले ऐसे हैं जहां न तो ढंग का स्वास्थ्य व्यवस्था, बच्चों के लिए स्कूल, रोज़गार और न ही गुज़र-बसर के लिए ही कोई व्यवस्था है। हालांकि सरकार ने इन ज़िलों को एस्पिरेशन ज़िलों की श्रेणी में रखा है।
ये ज़िले कोरोना वायरस के प्रकोप से अब अछूते नहीं हैं। जबकि इन ज़िलों में न तो विदेशी उड़ाने पहुंचती हैं और न ही यहां से कोई विदेश ही जाता है। देश में सख्त लॉकडाउन यहां शहरों में काम करने वाले यहां के मज़दूर पलायन कर वापस गांव चले गए। इन मज़दूरों के साथ ही कोरोना का भी स्थानांतरण हुआ। 1 अप्रैल तक जम्मू-कश्मीर के दो ज़िलों कुपवाड़ा और बारामूला में सिर्फ 6 मामले थे जो अब बढ़कर कुपवाड़ा में 318 और बारामुला में 301 हो गए हैं।
सरकार के सख्त लॉकडाउन की मार सबसे ज़्यादा इन ग़रीब मज़दूरों पर ही पड़ी। लॉकडाउन लागू होने के तुरंत बाद ही प्रवासी मज़दूरों का पलायन शुरू हुआ। पैदल, बदहवास और घर पहुंचने की इनकी कोशिशों ने देश ही नहीं दुनिया का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। सरकार की किड़कीड़ी के बाद श्रमिक ट्रेनें चलाई गई जिससे मज़दूरों को राहत तो मिली लेकिन हज़ारों इससे वंचित रहे। अब देश के सबसे ग़रीब इलाकों में कोरोना के प्रसार से सरकार के सामने चुनौती और बढ़ गई है। क्योंकि ये वो इलाक़े हैं जहां पीने तक के लिए साफ पीने नहीं मिलता। देखिए विस्तार से बता रहे हैं गोन्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ पंकज पचौरी नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक़ 13 ज़िले ऐसे हैं जो बेहद ग़रीब की श्रेणी में आते हैं। अबतक इन ज़िलों में कोरोना के 1,543 मामले सामने आए हैं। झारखंड के 24 में 15 ज़िलों में 692 मामले दर्ज हुए हैं। झारखंड उन राज्यों की लिस्ट में शामिल है जहां से बड़ी संख्या में मज़दूर शहरों में काम करने जाते हैं और अब लॉकडाउन की वजह से वापस लौट आए हैं। यानि उत्तरी राज्यों के ज़्यादातर ज़िले कोरोना मरीज़ों का घर बन चुका है। ये वो ज़िले हैं जो यूएन स्सटनेबल डेवलेपमेंट प्रोग्राम की लिस्ट में सबसे नीचे है। दुनिया के छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के ये वो ज़िले हैं जो स्वास्थ्य, शिक्षा, पीने का साफ पानी, गुज़र-बसर की व्यवस्थाएं, स्वच्छता के आधार पर सबसे पिछड़े हैं। इनमें कई ज़िले ऐसे हैं जहां न तो कोरोना टेस्टिंग और न ही कोरोना मरीज़ों के इलाज़ की ही कोई व्यवस्था है।
सरकार के सख्त लॉकडाउन की मार सबसे ज़्यादा इन ग़रीब मज़दूरों पर ही पड़ी। लॉकडाउन लागू होने के तुरंत बाद ही प्रवासी मज़दूरों का पलायन शुरू हुआ। पैदल, बदहवास और घर पहुंचने की इनकी कोशिशों ने देश ही नहीं दुनिया का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। सरकार की किड़कीड़ी के बाद श्रमिक ट्रेनें चलाई गई जिससे मज़दूरों को राहत तो मिली लेकिन हज़ारों इससे वंचित रहे। अब देश के सबसे ग़रीब इलाकों में कोरोना के प्रसार से सरकार के सामने चुनौती और बढ़ गई है। क्योंकि ये वो इलाक़े हैं जहां पीने तक के लिए साफ पीने नहीं मिलता। देखिए विस्तार से बता रहे हैं गोन्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ पंकज पचौरी नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक़ 13 ज़िले ऐसे हैं जो बेहद ग़रीब की श्रेणी में आते हैं। अबतक इन ज़िलों में कोरोना के 1,543 मामले सामने आए हैं। झारखंड के 24 में 15 ज़िलों में 692 मामले दर्ज हुए हैं। झारखंड उन राज्यों की लिस्ट में शामिल है जहां से बड़ी संख्या में मज़दूर शहरों में काम करने जाते हैं और अब लॉकडाउन की वजह से वापस लौट आए हैं। यानि उत्तरी राज्यों के ज़्यादातर ज़िले कोरोना मरीज़ों का घर बन चुका है। ये वो ज़िले हैं जो यूएन स्सटनेबल डेवलेपमेंट प्रोग्राम की लिस्ट में सबसे नीचे है। दुनिया के छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के ये वो ज़िले हैं जो स्वास्थ्य, शिक्षा, पीने का साफ पानी, गुज़र-बसर की व्यवस्थाएं, स्वच्छता के आधार पर सबसे पिछड़े हैं। इनमें कई ज़िले ऐसे हैं जहां न तो कोरोना टेस्टिंग और न ही कोरोना मरीज़ों के इलाज़ की ही कोई व्यवस्था है।
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