बेरोज़गारी के दौर में स्कूल प्रिंसिपल खाने की रेहड़ी लगाने को मजबूर
कोरोना महामारी के चलते देशभर में हज़ारों लोग बेरोज़गार हुए हैं और अपना गुज़र-बसर करने के लिए नए काम तलाश रहे हैं. ऐसा ही एक मामला तेलंगाना के खम्मम में सामने आया है जहां इंग्लिश मीडियम स्कूल के एक प्रिंसिपल रामबाबू की नौकरी चली गई और अब वो सड़क के किनारे रेहड़ी पर खाना बेच रहे हैं.
इसके बाद रामबाबू ने दो हज़ार रूपए में एक रेहड़ी ख़रीदी और अब वह अपनी पत्नी के साथ इडली, डोसा और वड़ा बेच रहे हैं. उन्हें फिलहाल हर दिन दो सौ रूपए का मुनाफा हो रहा है. उन्होंने कहा, शुरुआत में रेहड़ी लगाना अटपटा लगा लेकिन उन्होंने कहा कि किसी पर निर्भर रहने से बेहतर है कि खुद के पैरों पर खड़ा हुआ जाए. हालांकि यह कड़वी सच्चाई सिर्फ रामबाबू की नहीं है. हाल ही में राजस्थान में ऐसे कई लोग मनरेगा के तहत मज़दूरी करते हुए मिले जो महामारी से पहले स्कूलों में टीचर हुआ करते थे.
रामबाबू खम्मम के मिलेनियम इंग्लिश मीडियम स्कूल में प्रिंसिपल थे लेकिन कोरोना महामारी के बाद लागू लॉकडाउन के चलते उनकी नौकरी चली गई. स्कूल प्रबंधन ने उन्हें यह कहकर नौकरी से निकल दिया कि जब तक स्कूल नहीं खुलते, तब तक उन्हें प्रिंसिपल की ज़रूरत नहीं है. अचानक नौकरी जाने से 36 साल के रामबाबू मारागनी के लिए बीवी और दो बच्चों को पालना मुश्किल हो गया था. उनके घर में उनकी बूढी मां भी हैं जिनकी दवाइयों के लिए घर में बिल्कुल पैसे नहीं बचे थे.Telangana: Rambabu Maragani, who was a teacher at a private school in Khammam, is now running a food cart with his wife, after he lost his job due to COVID19 pandemic. He says, "Do not depend on anyone. Stand on your own feet". pic.twitter.com/ZgUAygHurG
— ANI (@ANI) June 23, 2020
इसके बाद रामबाबू ने दो हज़ार रूपए में एक रेहड़ी ख़रीदी और अब वह अपनी पत्नी के साथ इडली, डोसा और वड़ा बेच रहे हैं. उन्हें फिलहाल हर दिन दो सौ रूपए का मुनाफा हो रहा है. उन्होंने कहा, शुरुआत में रेहड़ी लगाना अटपटा लगा लेकिन उन्होंने कहा कि किसी पर निर्भर रहने से बेहतर है कि खुद के पैरों पर खड़ा हुआ जाए. हालांकि यह कड़वी सच्चाई सिर्फ रामबाबू की नहीं है. हाल ही में राजस्थान में ऐसे कई लोग मनरेगा के तहत मज़दूरी करते हुए मिले जो महामारी से पहले स्कूलों में टीचर हुआ करते थे.
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