मज़दूरों की कमी के चलते साइकिल के उत्पादन में 50 फ़ीसदी की गिरावट
कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में लॉकडाउन के चलते लाखों मज़दूर अपने घर वापस जाने के लिए मज़बूर हुए थे मगर उन्हीं मज़दूरों के नहीं लौटने पर कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. पंजाब में साइकिल बनाने वाली कंपनियों को मज़दूरों की कमी के वजह से ख़ासा नुकसान झेलना पड़ रहा है.
ऑल इंडिया साइकिल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ओंकार सिंह पाहवा ने कहा कि मजदूरों की कमी के चलते पूरी तरह साइकिल का उत्पादन नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि निर्माता और विक्रेता दोनों ही जगहों पर मजदूरों की भारी कमी है. बाजार में साइकिल की बहुत मांग है लेकिन मज़दूरों की कमी की वजह से मांग पूरी नहीं हो पा रही.
उन्होंने बताया कि पिछले साल अप्रैल से जून के महीने में 50 लाख साइकिलें बेचीं गई थी, लेकिन इस साल इसी दौरान महज़ 25 लाख साइकिल ही बेची हैं. हालाँकि पाहवा को उम्मीद है कि जैसे ही स्कूल फिर से खुलेंगे, मांग और आपूर्ति दोबारा सामान्य हो जाएगी. लुधियाना की भोगल साइकिल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर अवतार सिंह भोगल ने बताया कि साइकिल की मांग बढ़ने के बावजूद वो इसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. कोरोना के चलते विभिन्न राज्यों में साइकिल बांटने की योजना फ़िलहाल बंद है, लेकिन अगर आर्डर आता है, तो हम मजदूरों की कमी के कारण साइकिल का उत्पादन नहीं कर पाएंगे. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के पहले, अगर कोई 2 लाख रुपये की बिक्री करता था, तो अब वह लगभग 50 हज़ार रुपये ही कमा रहा है. लॉकडाउन के दौरान जून में देश की सबसे बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी एटलस ने अपनी साहिबाबाद फ़ैक्ट्री को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया था और लगभग 1000 से ज़्यादा श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया गया था. एटलस साइकिल की साहिबाबाद फ़ैक्ट्री में लॉकडाउन से पहले हर महीने दो लाख साइकिलें बनाई जा रही थीं लेकिन अब इसमें काफी कटौती हो गई है.
उन्होंने बताया कि पिछले साल अप्रैल से जून के महीने में 50 लाख साइकिलें बेचीं गई थी, लेकिन इस साल इसी दौरान महज़ 25 लाख साइकिल ही बेची हैं. हालाँकि पाहवा को उम्मीद है कि जैसे ही स्कूल फिर से खुलेंगे, मांग और आपूर्ति दोबारा सामान्य हो जाएगी. लुधियाना की भोगल साइकिल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर अवतार सिंह भोगल ने बताया कि साइकिल की मांग बढ़ने के बावजूद वो इसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. कोरोना के चलते विभिन्न राज्यों में साइकिल बांटने की योजना फ़िलहाल बंद है, लेकिन अगर आर्डर आता है, तो हम मजदूरों की कमी के कारण साइकिल का उत्पादन नहीं कर पाएंगे. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के पहले, अगर कोई 2 लाख रुपये की बिक्री करता था, तो अब वह लगभग 50 हज़ार रुपये ही कमा रहा है. लॉकडाउन के दौरान जून में देश की सबसे बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी एटलस ने अपनी साहिबाबाद फ़ैक्ट्री को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया था और लगभग 1000 से ज़्यादा श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया गया था. एटलस साइकिल की साहिबाबाद फ़ैक्ट्री में लॉकडाउन से पहले हर महीने दो लाख साइकिलें बनाई जा रही थीं लेकिन अब इसमें काफी कटौती हो गई है.
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