COP13 कांफ्रेंस गांधी नगर में शुरू, कई ज़िम्मेदार डेलिगेट्स ग़ायब
गुजरात के गांधीनगर में वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कॉप-13 कांफ्रेंस शुरू हो गई है. इस कांफ्रेंस में पेश रिपोर्ट बताती है कि देश में पक्षियों की प्रजातियों की संख्या घट रही है. मगर सबसे हैरानी की बात ये रही कि इतनी अहम कांफ्रेंस में कई ज़िम्मेदार अफ़सर पहुंचे ही नहीं.
गुजरात के गांधीनगर में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर एक कांफ्रेंस कॉप-13 चल रही है जिसके एक सेशन की शुरुआत पीएम मोदी ने दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए की. उन्होंने यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीसीज़ कांफ्रेंस सेशन में कहा कि भारत के सांस्कृतिक स्वभाव में सदियों से वन्य जीवों का संरक्षण करना हिस्सा रहा है.
हालांकि इसी कांफ्रेंस में प्रवासी पक्षियों की 867 प्रजातियों पर एक रिपोर्ट परेशान करने वाली है. परिंदों की 867 प्रजातियों पर बनी यह रिपोर्ट कहती है कि देश में राष्ट्रीय पक्षी भारतीय मोर की संख्या बढ़ी है लेकिन परिंदों की 50 फ़ीसदी प्रजातियों में भारी गिरावट हुई है. सबसे ज़्यादा कमी व्हाइट रमपेट वल्चर की तादाद में देखने को मिली है जो दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा पाया जाता है. यह साल 2000 से ही रेड लिस्ट में है. इसके अलावा इंडियन वल्चर की भी संख्या में गिरावट आई है जो मध्य भारत के पहाड़ी इलाकों में दिखता है। इस रिपोर्ट में ऐसी कई प्रजातियों के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है. हालांकि पक्षियों की कुछ प्रजातियों में ख़ासी बढ़ोतरी भी हुई है. हरे और नीले रंग के मोर के अलावा इंडियन पीफाउल की संख्या काफी बढ़ी है. अफ्रीका से उत्तरी अमेरिका तक पाई जाने वाला ग्लॉसी इबिस नाम का परिंदा भी इसमें शामिल है। ये ज़्यादातर वेटलैंड में पाए जाते हैं। इनके अलावा फेरल पिजन, प्लेन प्रिनिस और रोज़ी स्टर्लिंग की संख्या बेहतर हुई है. प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए हुए इस अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में एक बात यह भी हैरान करने वाली रही कि कई ज़िम्मेदार अधिकारी इसमें नदारद दिखे. गुजरात के गांधी नगर में कांफ्रेंस होने के बावजूद राज्य के ही वन विभाग से प्रतिनिधि नहीं पहुंचे. इनके अलाव इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट की तरह कई संस्थानों और विभागों के डेलीगेट्स नहीं दिखाई दिए. सम्मलेन में जगह-जगह खाली कुर्सियां और मेज़ नज़र आती रहीं.
हालांकि इसी कांफ्रेंस में प्रवासी पक्षियों की 867 प्रजातियों पर एक रिपोर्ट परेशान करने वाली है. परिंदों की 867 प्रजातियों पर बनी यह रिपोर्ट कहती है कि देश में राष्ट्रीय पक्षी भारतीय मोर की संख्या बढ़ी है लेकिन परिंदों की 50 फ़ीसदी प्रजातियों में भारी गिरावट हुई है. सबसे ज़्यादा कमी व्हाइट रमपेट वल्चर की तादाद में देखने को मिली है जो दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा पाया जाता है. यह साल 2000 से ही रेड लिस्ट में है. इसके अलावा इंडियन वल्चर की भी संख्या में गिरावट आई है जो मध्य भारत के पहाड़ी इलाकों में दिखता है। इस रिपोर्ट में ऐसी कई प्रजातियों के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है. हालांकि पक्षियों की कुछ प्रजातियों में ख़ासी बढ़ोतरी भी हुई है. हरे और नीले रंग के मोर के अलावा इंडियन पीफाउल की संख्या काफी बढ़ी है. अफ्रीका से उत्तरी अमेरिका तक पाई जाने वाला ग्लॉसी इबिस नाम का परिंदा भी इसमें शामिल है। ये ज़्यादातर वेटलैंड में पाए जाते हैं। इनके अलावा फेरल पिजन, प्लेन प्रिनिस और रोज़ी स्टर्लिंग की संख्या बेहतर हुई है. प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए हुए इस अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में एक बात यह भी हैरान करने वाली रही कि कई ज़िम्मेदार अधिकारी इसमें नदारद दिखे. गुजरात के गांधी नगर में कांफ्रेंस होने के बावजूद राज्य के ही वन विभाग से प्रतिनिधि नहीं पहुंचे. इनके अलाव इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट की तरह कई संस्थानों और विभागों के डेलीगेट्स नहीं दिखाई दिए. सम्मलेन में जगह-जगह खाली कुर्सियां और मेज़ नज़र आती रहीं.
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