‘दलित, आदिवासी और मुसलमान लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा पिसे’
देश में लॉकडाउन लागू हुए 50 दिन से ज़्यादा गुज़र चुके हैं लेकिन महानगरों से लाखों मज़दूरों का पलायन जारी है. इन ग़रीब दिहाड़ी मज़दूरों में ज़्यादातर दलित, आदिवासी और मुसलमान हैं. देश में ग़रीबों की जातिय और धार्मिक पृष्ठभूमि का पता लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक अध्ययन किया जिसकी रिपोर्ट 2018 में जारी की गई.
ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स नाम की इस रिपोर्ट में बताया गया कि देश में आदिवासी समुदाय का हर दूसरा शख़्स ग़रीब है. इसी तरह देश में हर तीसरा दलित और मुसलमान ग़रीबी की मार झेल रहा है. इनके अलावा 15 फ़ीसदी सवर्ण जातियां गरीब की श्रेणी में आती हैं. इस रिपोर्ट में लोगों की आमदनी के साथ-साथ उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, जीवन स्तर जैसे पहलुओं को भी आधार बनाया गया जिससे पता चलता है कि देश में ग़रीबी और ग़ैर-बराबरी का हाल क्या है.
संयुक्त राष्ट्र के इस अध्ययन पर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट भी मुहर लगाती है. इसके मुताबिक सबसे कम संपत्ति वाले खांचे में सबसे ज़्यादा 45.9 फीसदी आदिवासी, 26.6 फ़ीसदी दलित, 18.3 फ़ीसदी ओबीसी, 9.7 फ़ीसदी अन्य जातियों वाले हैं. इनके अलावा 25.3 फ़ीसदी ऐसे लोग हैं जिनकी जाति नहीं पता है. धर्म के हिसाब से देखें तो 21 फीसदी हिंदू, 18 फीसदी मुसलमान, 11.4 फीसदी ईसाई और सिख 0.9 फ़ीसदी सबसे कम संपत्ति वाले खांचे में आते हैं. वीडियो देखिए इसी तरह ग्रामीण विकास मंत्रालय की नवंबर 2016 में आई रिपोर्ट से पता चलता है कि मनरेगा के तहत काम करने वालों में दलितों और आदिवासियों की भागीदारी 50 फ़ीसदी से ज़्यादा है जबकि बाक़ी 49.3 में ओबीसी, मुसलमान और सवर्ण समुदाय के लोग शामिल हैं. इन रिपोर्टों से साफ़ है कि देश में तालाबंदी दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों पर ज़्यादा भारी पड़ रही है जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. लाखों की तादाद में गांव पहुंच रहे इन लोगों की ज़िंदगी दोबारा पटरी पर लौट पाएगी, कहना बेहद मुश्किल है.
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संयुक्त राष्ट्र के इस अध्ययन पर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट भी मुहर लगाती है. इसके मुताबिक सबसे कम संपत्ति वाले खांचे में सबसे ज़्यादा 45.9 फीसदी आदिवासी, 26.6 फ़ीसदी दलित, 18.3 फ़ीसदी ओबीसी, 9.7 फ़ीसदी अन्य जातियों वाले हैं. इनके अलावा 25.3 फ़ीसदी ऐसे लोग हैं जिनकी जाति नहीं पता है. धर्म के हिसाब से देखें तो 21 फीसदी हिंदू, 18 फीसदी मुसलमान, 11.4 फीसदी ईसाई और सिख 0.9 फ़ीसदी सबसे कम संपत्ति वाले खांचे में आते हैं. वीडियो देखिए इसी तरह ग्रामीण विकास मंत्रालय की नवंबर 2016 में आई रिपोर्ट से पता चलता है कि मनरेगा के तहत काम करने वालों में दलितों और आदिवासियों की भागीदारी 50 फ़ीसदी से ज़्यादा है जबकि बाक़ी 49.3 में ओबीसी, मुसलमान और सवर्ण समुदाय के लोग शामिल हैं. इन रिपोर्टों से साफ़ है कि देश में तालाबंदी दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों पर ज़्यादा भारी पड़ रही है जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. लाखों की तादाद में गांव पहुंच रहे इन लोगों की ज़िंदगी दोबारा पटरी पर लौट पाएगी, कहना बेहद मुश्किल है.
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