GoFlashback: कैसे बिखरा पूर्व उप प्रधामंत्री चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला का परिवार?
हरियाणा के चौधरी देवीलाल के परिवार का राज्य और देश की राजनीति पर ज़बर्जस्त प्रभाव हुआ करता था। देवीलाल दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और एक बार देश के उप प्रधानमंत्री भी बने । देवीलाल के बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को इस राजनैतिक विरासत का फ़ायदा मिला, जब पिता देवीलाल केंद्र की राजनीती में उतरे तो ओमप्रकश चौटाला हरियाणा का मुख्यमंत्री पद थाली में सजा हुआ मिल गया।
इसके बाद ओमप्रक्शा चौटाला ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।
लेकिन अब हालत ये है कि इस परिवार में आपसी मतभेद के चलते देवीलाल के इस कुनबे को बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। चाचा अभय सिंह चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला की आपसी लड़ाई इस कद्र बढ़ गई कि इंडियन नेशनल लोक दल पार्टी दो धड़ों में बँट गई हैं। इनेलो में बिखराव की शुरुआत पिछले साल गोहाना रैली में हुई थी, जिसके बाद दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग राह चुन ली। अभय सिंह चौटाला ने इनेलो की कमान संभाली तो भतीजे दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन कर लिया। वर्तमान में हालत ऐसे है कि इन दोनों पार्टियों को अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। दरअसल शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने जनवरी 2013 में इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय सिंह समेत 55 अन्य लोगों को सज़ा सुनाई है। पिता-पुत्र को दस-दस साल की सज़ा सुनाई गई। जनप्रतिनिधि अधिनियम के अनुसार किसी भी मामले में दोषी और दो साल के से ज्यादा की जेल की सजा पाने वाला किसी भी व्यक्ति की सजा खत्म होने के छह साल बाद तक वो व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहेगा। ऐसे में अब अजय सिंह चौटाला चुनावी मैदान में नहीं उतर सकते हैं। तो उनकी विरासत को संभालने के लिए उनके बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला मैदान में आये, लेकिन इंडियन नेशनल लोकदल पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए अभय सिंह चौटाला ने दुष्यंत के लिए जगह नहीं रखी। पारिवारिक मतभेद इतने ज्यादा बड़ गए कि दादा ओमप्रकाश चौटाला ने अपने दोनों पोतों और बेटे अजय सिंह को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की चौथी पीढ़ी अपने पारिवारिक लड़ाई अब सड़को पर आगई है। पारिवारिक लड़ाई की वजह से हरियाणा पर राज करनी वाले चौटाला परिवार की पार्टी इनेलो अब 3 विधायकों पर ही सिमट कर रह गई है। और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों में पूरा ख़ानदान डूब गया है। लोकसभा चुनाव से पहले इनेलो पार्टी टूटी तो वर्त्तमान विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के कई बड़े नेता बीजेपी और जजपा में शामिल हो गए। हालाँकि चौटाला परिवार के अंदर पार्टी के वर्चस्व की लड़ाई नई बात नहीं है। आज जिस दौर से ओमप्रकाश चौटाला गुज़र रहे हैं, वही हालात चौधरी देवीलाल के समय भी हुई थी। तब चौधरी देवीलाल के दोनों बेटे रणजीत चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला के बीच पिता की राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकारी बनने को लेकर भाईओ में लड़ाई हुई। लेकिन यहाँ देवीलाल ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर ओमप्रकाश चौटाला को चुना और ओमप्रकश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। वहीँ पिता से नाराज़ दूसरे बेटे रणजीत चौटाला ने पार्टी का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसी तरह आज जब ओमप्रकाश चौटाला ने छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला के प्रति पितृप्रेम झलकाया तो अजय सिंह चौटाला को बाहर का रास्ता देखना पड़ा। लड़ाई आज भी राजनैतिक विरासत की है, संघर्ष का केंद्र आज भी वही सत्ता की कुर्सी है फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि चौधरी देवीलाल की जगह अब ओमप्रकाश चौटाला है। लेकिन देवीलाल से चौटाला तक आते आते परिवार की राटनीतिक दृष्टि गिरती चली गयी और आज एक नए धरातल पर है। GoFlashback - हिटलर की ख़ातिर 'ज़हर चखने' वाली औरत की कहानी
लेकिन अब हालत ये है कि इस परिवार में आपसी मतभेद के चलते देवीलाल के इस कुनबे को बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। चाचा अभय सिंह चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला की आपसी लड़ाई इस कद्र बढ़ गई कि इंडियन नेशनल लोक दल पार्टी दो धड़ों में बँट गई हैं। इनेलो में बिखराव की शुरुआत पिछले साल गोहाना रैली में हुई थी, जिसके बाद दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग राह चुन ली। अभय सिंह चौटाला ने इनेलो की कमान संभाली तो भतीजे दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन कर लिया। वर्तमान में हालत ऐसे है कि इन दोनों पार्टियों को अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। दरअसल शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने जनवरी 2013 में इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय सिंह समेत 55 अन्य लोगों को सज़ा सुनाई है। पिता-पुत्र को दस-दस साल की सज़ा सुनाई गई। जनप्रतिनिधि अधिनियम के अनुसार किसी भी मामले में दोषी और दो साल के से ज्यादा की जेल की सजा पाने वाला किसी भी व्यक्ति की सजा खत्म होने के छह साल बाद तक वो व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहेगा। ऐसे में अब अजय सिंह चौटाला चुनावी मैदान में नहीं उतर सकते हैं। तो उनकी विरासत को संभालने के लिए उनके बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला मैदान में आये, लेकिन इंडियन नेशनल लोकदल पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए अभय सिंह चौटाला ने दुष्यंत के लिए जगह नहीं रखी। पारिवारिक मतभेद इतने ज्यादा बड़ गए कि दादा ओमप्रकाश चौटाला ने अपने दोनों पोतों और बेटे अजय सिंह को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की चौथी पीढ़ी अपने पारिवारिक लड़ाई अब सड़को पर आगई है। पारिवारिक लड़ाई की वजह से हरियाणा पर राज करनी वाले चौटाला परिवार की पार्टी इनेलो अब 3 विधायकों पर ही सिमट कर रह गई है। और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों में पूरा ख़ानदान डूब गया है। लोकसभा चुनाव से पहले इनेलो पार्टी टूटी तो वर्त्तमान विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के कई बड़े नेता बीजेपी और जजपा में शामिल हो गए। हालाँकि चौटाला परिवार के अंदर पार्टी के वर्चस्व की लड़ाई नई बात नहीं है। आज जिस दौर से ओमप्रकाश चौटाला गुज़र रहे हैं, वही हालात चौधरी देवीलाल के समय भी हुई थी। तब चौधरी देवीलाल के दोनों बेटे रणजीत चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला के बीच पिता की राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकारी बनने को लेकर भाईओ में लड़ाई हुई। लेकिन यहाँ देवीलाल ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर ओमप्रकाश चौटाला को चुना और ओमप्रकश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। वहीँ पिता से नाराज़ दूसरे बेटे रणजीत चौटाला ने पार्टी का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसी तरह आज जब ओमप्रकाश चौटाला ने छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला के प्रति पितृप्रेम झलकाया तो अजय सिंह चौटाला को बाहर का रास्ता देखना पड़ा। लड़ाई आज भी राजनैतिक विरासत की है, संघर्ष का केंद्र आज भी वही सत्ता की कुर्सी है फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि चौधरी देवीलाल की जगह अब ओमप्रकाश चौटाला है। लेकिन देवीलाल से चौटाला तक आते आते परिवार की राटनीतिक दृष्टि गिरती चली गयी और आज एक नए धरातल पर है। GoFlashback - हिटलर की ख़ातिर 'ज़हर चखने' वाली औरत की कहानी
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