क्या कोरोना वायरस प्रकृति का मानवता से बदला है?
पिछले कुछ समय से दुनिया बार-बार महमारियों की चपेट में आ रही है जिसके चलते हज़ारों-लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कई वैज्ञानिकी शोध बताते हैं कि ज़्यादातर महामारी जानवरों से इंसानों में पहुंची। सवाल उठ रहे हैं कि बार-बार कोरोना वायरस जैसी लाइलाज महामारी के लौटने का स्थाई इलाज आख़िर क्या है?
महामारी को ऐसे बीमारी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जोकि लाखों लोगों की जान लेकर सभ्यताएं उजाड़ने की क्षमता रखती है। ज़्यादातर महामारी ज़ूनोटिक होती है। ज़ूनोटिक बीमारी वो होती है जो जानवरों से इंसानों में संचारित होती है और इसकी सबसे बड़ी वजह है इंसानों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के बीच बढ़ता संपर्क। विशेषज्ञों के मुताबिक ज़ूनोटिक रोगों के फैलने का सबसे बड़ा कारण है वन्यजीव व्यापार जिसमें मनुष्यों और जानवरों की विभिन्न जीवित और मृत प्रजातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क बना रहता है।
वैज्ञानिकों की मानें तो बहुत से माइक्रोब्स यानि रोगाणु खुद से नहीं बढ़ सकते इसलिए वे दूसरे लिविंग सेल्स को हाईजैक करते हैं ताकि फ़ैल सके। इंसानी शरीर भी बुखार, छींक, खांसी और डाइरिया जैसे माइक्रोब्स से लड़ने की क्षमता रखता है लेकिन कुछ माइक्रोब्स इतने ख़तरनाक होते हैं कि वो हमारी जान ले सकते हैं। बता दें कि महामारियां दो तरह के माइक्रोब्स से उपजती है, एक बैक्टीरिया और वायरस। कुछ जानवर रोगों के भंडार के रूप में काम करते हैं और उस बीमारी के ख़तरनाक वायरस और बैक्टीरिया को दूसरे जानवरों तक पहुंचाते हैं। लेकिन ऐसे वायरस तब ख़तरनाक बन जाते हैं जब कोई व्यक्ति ऐसे किसी जानवर के संपर्क में आ जाता है। एक बार रोग फैलाने वाला वायरस या बैक्टीरिया पहले व्यक्ति को संक्रमित कर दे फिर इसका एक से दूसरे इंसान में संचरण आसान हो जाता है और ऐसे पैदा होती है एक महामारी। वन्यजीव व्यापार से पहले भी कई घातक बीमारियों से लोगों ने जानें गंवाई है।
महामारी को ऐसे बीमारी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जोकि लाखों लोगों की जान लेकर सभ्यताएं उजाड़ने की क्षमता रखती है। ज़्यादातर महामारी ज़ूनोटिक होती है। ज़ूनोटिक बीमारी वो होती है जो जानवरों से इंसानों में संचारित होती है और इसकी सबसे बड़ी वजह है इंसानों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के बीच बढ़ता संपर्क। विशेषज्ञों के मुताबिक ज़ूनोटिक रोगों के फैलने का सबसे बड़ा कारण है वन्यजीव व्यापार जिसमें मनुष्यों और जानवरों की विभिन्न जीवित और मृत प्रजातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क बना रहता है।
वैज्ञानिकों की मानें तो बहुत से माइक्रोब्स यानि रोगाणु खुद से नहीं बढ़ सकते इसलिए वे दूसरे लिविंग सेल्स को हाईजैक करते हैं ताकि फ़ैल सके। इंसानी शरीर भी बुखार, छींक, खांसी और डाइरिया जैसे माइक्रोब्स से लड़ने की क्षमता रखता है लेकिन कुछ माइक्रोब्स इतने ख़तरनाक होते हैं कि वो हमारी जान ले सकते हैं। बता दें कि महामारियां दो तरह के माइक्रोब्स से उपजती है, एक बैक्टीरिया और वायरस। कुछ जानवर रोगों के भंडार के रूप में काम करते हैं और उस बीमारी के ख़तरनाक वायरस और बैक्टीरिया को दूसरे जानवरों तक पहुंचाते हैं। लेकिन ऐसे वायरस तब ख़तरनाक बन जाते हैं जब कोई व्यक्ति ऐसे किसी जानवर के संपर्क में आ जाता है। एक बार रोग फैलाने वाला वायरस या बैक्टीरिया पहले व्यक्ति को संक्रमित कर दे फिर इसका एक से दूसरे इंसान में संचरण आसान हो जाता है और ऐसे पैदा होती है एक महामारी। वन्यजीव व्यापार से पहले भी कई घातक बीमारियों से लोगों ने जानें गंवाई है।
- साल 2013 से 2016 तक दक्षिण अफ्रीका में इबोला वायरस के चलते रहा जिसमें 11 हज़ार 310 लोगों की मौत हुई थी और 28 हज़ार 616 लोग बिमारी की चपेट में आए थे। वैज्ञानिकों के अनुसार ये वायरस चमगादड़ से इंसानी जिस्म में आया था।
- साल 2002 से 2003 में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) चीन की गुआंगज़ौ वन्यजीव बाज़ार से फैला था जिससे 8,098 मामले सामने आए और 774 लोगों की जानें गई।
- एवियन इन्फ़्लुएन्ज़ा H5N1, जो की 2003 से 2015 तक दुनिया के लिए ख़तरा बना रहा और इसकी वजह से 440 लोगों की जान गई थी और करीब 826 लोग संक्रमित पाए गए थे। ये बीमारी बेल्जियम से थाईलैंड लाए गए हॉक ईगल से फैली थी।
- 2003 में घाना से अमेरिका में जंगली रोडेन्ट्स यानि चूहों के व्यापार से मंकीपॉक्स नाम की एक बीमारी ने जन्म लिया था और इससे कई लोग पीड़ित हुए थे।
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