सीएए का विरोध करना देशद्रोह नहीं - बॉम्बे हाईकोर्ट
या दिल्ली के शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रही महिलाएँ देशद्रोही हैं? क्या देश के अलग-अलग हिस्सों में सीएए के ख़िलाफ़ धरने पर बैठे लोग देशद्रोही हैं? अगर आप भी वहाँ गए तो क्या आप देशद्रोही हुए? अगर आपने भी सीएए के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लिया तो क्या आप देशद्रोही हैं? क्या सीएए के ख़िलाफ़ धरने पर बैठे लोगों को देशद्रोही या ग़द्दार कहा जा सकता है? जैसा कि कुछ लोग धड़ल्ले से कह रहे हैं।
आजकल सरकार का विरोध करने को देशद्रोही कहा जाने लगा है। सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने को देशद्रोह कहा जाने लगा है। सरकार से उसके कामकाज़ पर सवाल करना नागरिकों का अधिकार है। लोकतंत्र हमें विरोध का अधिकार देता है, डिसेंट का राइट देता है। संविधान में इसका प्रावधान है। तो फिर हर ऐरा ग़ैरा नत्थु खैरा जो सरकार के नज़दीक है या सरकार के नज़दीक जाना चाहता है वो कैसे कह सकता है कि सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना देशद्रोह है।
किसी क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना एंटी नेशनल नहीं होता। ये बात मैं नहीं कह रहा ये बात बॉम्बे हाई कोर्ट ने कही है। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। सीएए और एनआरसी का विरोध करने वालों को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ़ इसलिए कि वे एक कानून का विरोध करना चाहते हैं हम उन्हें देशद्रोही नहीं कह सकते।"किसी क़ानून के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध करने वालों को गद्दार या "देशद्रोही" नहीं कहा जा सकता है।” बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के लिए पुलिस की इजाज़त नहीं मिलने के ख़िलाफ़ एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. कोर्ट ने कहा कि एक आंदोलन को केवल इस आधार पर नहीं दबाया जा सकता कि वे सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। कोर्ट के शब्दों में “जब हम इस तरह एक कार्यवाही पर विचार करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम एक लोकतांत्रिक गणराज्य देश हैं और हमारे संविधान ने हमें क़ानून का शासन दिया है, न कि बहुमत का शासन. जब इस तरह का क़ानून बनाया जाता है, तो कुछ लोगों को, विशेष रूप से मुसलमानों को यह महसूस हो सकता है कि यह उनके हित के ख़िलाफ़ है. लिहाज़ा इस तरह के क़ानून का विरोध किया जाना चाहिए. यह उनकी धारणा और विश्वास का विषय है और अदालत उस धारणा या विश्वास के गुण में नहीं जा सकती है.” अब कोर्ट ने ये कह दिया है तो देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट बाँट रहे उन तमाम लोगों को कोर्ट की बात माननी चाहिए। सरकार को भी ये बात मान लेनी चाहिए और जो लोग धरने पर बैठे हैं और देश भर में प्रदर्शन कर रहे हैं उनसे बात करनी चाहिए। क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री जी कई बार चुनावी रैलियों में तंज़ करते हुए ये कह चुके हैं कि जो लोग कोर्ट की बात नहीं मानते वे संविधान की बात करते हैं। सुनिए अदालत ने एक और सबसे अहम बात कही है ‘भारत को प्रदर्शन के कारण स्वतंत्रता मिली जो अहिंसक थे और आज की तारीख तक इस देश के लोग अंहिसा का रास्ता अपनाते हैं। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि इस देश के लोग अब भी अहिंसा में विश्वास रखते हैं।’
किसी क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना एंटी नेशनल नहीं होता। ये बात मैं नहीं कह रहा ये बात बॉम्बे हाई कोर्ट ने कही है। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। सीएए और एनआरसी का विरोध करने वालों को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ़ इसलिए कि वे एक कानून का विरोध करना चाहते हैं हम उन्हें देशद्रोही नहीं कह सकते।"किसी क़ानून के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध करने वालों को गद्दार या "देशद्रोही" नहीं कहा जा सकता है।” बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के लिए पुलिस की इजाज़त नहीं मिलने के ख़िलाफ़ एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. कोर्ट ने कहा कि एक आंदोलन को केवल इस आधार पर नहीं दबाया जा सकता कि वे सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। कोर्ट के शब्दों में “जब हम इस तरह एक कार्यवाही पर विचार करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम एक लोकतांत्रिक गणराज्य देश हैं और हमारे संविधान ने हमें क़ानून का शासन दिया है, न कि बहुमत का शासन. जब इस तरह का क़ानून बनाया जाता है, तो कुछ लोगों को, विशेष रूप से मुसलमानों को यह महसूस हो सकता है कि यह उनके हित के ख़िलाफ़ है. लिहाज़ा इस तरह के क़ानून का विरोध किया जाना चाहिए. यह उनकी धारणा और विश्वास का विषय है और अदालत उस धारणा या विश्वास के गुण में नहीं जा सकती है.” अब कोर्ट ने ये कह दिया है तो देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट बाँट रहे उन तमाम लोगों को कोर्ट की बात माननी चाहिए। सरकार को भी ये बात मान लेनी चाहिए और जो लोग धरने पर बैठे हैं और देश भर में प्रदर्शन कर रहे हैं उनसे बात करनी चाहिए। क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री जी कई बार चुनावी रैलियों में तंज़ करते हुए ये कह चुके हैं कि जो लोग कोर्ट की बात नहीं मानते वे संविधान की बात करते हैं। सुनिए अदालत ने एक और सबसे अहम बात कही है ‘भारत को प्रदर्शन के कारण स्वतंत्रता मिली जो अहिंसक थे और आज की तारीख तक इस देश के लोग अंहिसा का रास्ता अपनाते हैं। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि इस देश के लोग अब भी अहिंसा में विश्वास रखते हैं।’
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