नफ़रती हवा की गिरफ़्त में आता डॉक्टरी का पेशा, अब राजस्थान का अस्पताल बदनाम हुआ
एक कहावत है कि मरीज़ के लिए ऊपर भगवान और नीचे डॉक्टर. मगर सांप्रदायिक भेदभाव की चपेट में अब पवित्र समझा जाने वाला चिकित्सा का पेशा भी आ गया है. राजस्थान के एक निजी अस्तपाल के कर्मचारियों की लीक हुई व्हाट्सप्प चैट डिटेल्स से ऐसा पता चलता है.
डॉक्टर सुनील चौधरी चूरू ज़िले में श्रीचंद बराडिया रोग निदान केंद्र नाम का अस्पताल चलाते हैं. इस अस्पताल के स्टाफ ने व्हाट्सप्प ग्रुप पर कई आपत्तिजनक बातें लिखीं. इसमें लिखा है, ‘कल से मैं मुस्लिम मरीज़ का इलाज नहीं करूंगा.’ एक अन्य मैसेज में लिखा है, ‘मुस्लिम मरीज़ को देखना ही बंद करवा दो.’ इसी ग्रुप में एक तीसरा मैसेज है, ‘अगर हिंदू पॉज़िटिव होते हैं और मुस्लिम डॉक्टर होता तो हिंदू को कभी नहीं देखता. मैं नहीं देखूंगी मुस्लिम मरीज़ को ओपीडी में, बोल देना मैडम हैं ही नहीं.’ चुरु पुलिस की शुरुआती तफ़्तीश में पता चला है कि इसमें एक मैसेज अस्पताल के मालिक डॉक्टर सुनील चौधरी की पत्नी डॉक्टर भगवती चौधरी है लेकिन उन्होंने इससे इनकार किया है.
वीडियो देखिए सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल होने के बाद डॉक्टर सुनील चौधरी ने फेसबुक पर माफी मांगी है. उन्होंने मुस्लिम मरीज़ों के साथ भेदभाव के आरोप को इनकार किया और यह भी कहा कि सरकारी स्कीम के तहत उनके अस्पताल में 70% मरीज़ मुस्लमान थे जिनका पूरा ध्यान रखा गया. कहा जा रहा है कि यह वॉट्सएप चैट दो महीने पुरानी है लेकिन अब वायरल हो गई है जब तब्लीग़ी जमात के चलते कोरोनावायरस की महामारी को मुस्लिम समुदाय से जोड़ दिया गया था. ठीक इसी तरह का मामला यूपी के कानपुर से भी आया. यहां गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ आरती लालचंदानी के कुछ नफ़रत भरे बयान वीडियो में क़ैद हो गए. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि तब्लीग़ी जमात के कोरोना से पीड़ित लोगों के इलाज पर यूपी सरकार को खर्च नहीं करना चाहिए. डॉक्टर लालचंदानी का वीडियो वायरल होने के बाद पहले उन्होंने आरोपों को झूठा बताया लेकिन बाद में माफ़ी मांग ली थी. चिकित्सा जैसे गंभीर पेशे में धार्मिक भेदभाव की एक झलक दक्षिण पूर्वी दिल्ली के दंगों में भी देखने को मिली थी. तब जन स्वास्थ्य अभियान नाम के एक गैर सरकारी संस्थान ने आरोप लगाया था कि दंगो में घायल हुए लोगों का इलाज़ कर रहे डॉक्टरों ने उनपर फब्तियां कसीं. उनपर तंज़ किया गया कि एनआरसी के लिए काग़ज़ दिखाने से मना कर रहे थे, क्या इलाज के लिए काग़ज़ नहीं दिखाओगे.
वीडियो देखिए सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल होने के बाद डॉक्टर सुनील चौधरी ने फेसबुक पर माफी मांगी है. उन्होंने मुस्लिम मरीज़ों के साथ भेदभाव के आरोप को इनकार किया और यह भी कहा कि सरकारी स्कीम के तहत उनके अस्पताल में 70% मरीज़ मुस्लमान थे जिनका पूरा ध्यान रखा गया. कहा जा रहा है कि यह वॉट्सएप चैट दो महीने पुरानी है लेकिन अब वायरल हो गई है जब तब्लीग़ी जमात के चलते कोरोनावायरस की महामारी को मुस्लिम समुदाय से जोड़ दिया गया था. ठीक इसी तरह का मामला यूपी के कानपुर से भी आया. यहां गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ आरती लालचंदानी के कुछ नफ़रत भरे बयान वीडियो में क़ैद हो गए. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि तब्लीग़ी जमात के कोरोना से पीड़ित लोगों के इलाज पर यूपी सरकार को खर्च नहीं करना चाहिए. डॉक्टर लालचंदानी का वीडियो वायरल होने के बाद पहले उन्होंने आरोपों को झूठा बताया लेकिन बाद में माफ़ी मांग ली थी. चिकित्सा जैसे गंभीर पेशे में धार्मिक भेदभाव की एक झलक दक्षिण पूर्वी दिल्ली के दंगों में भी देखने को मिली थी. तब जन स्वास्थ्य अभियान नाम के एक गैर सरकारी संस्थान ने आरोप लगाया था कि दंगो में घायल हुए लोगों का इलाज़ कर रहे डॉक्टरों ने उनपर फब्तियां कसीं. उनपर तंज़ किया गया कि एनआरसी के लिए काग़ज़ दिखाने से मना कर रहे थे, क्या इलाज के लिए काग़ज़ नहीं दिखाओगे.
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