33 सालों में करोड़ों रूपये खर्च करने के बावजूद, नहीं हो पाई गंगा की सफाई
गंगा नदी की सफ़ाई की शुरुआत साल 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान के गठन के साथ की थी। गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा के पानी की गुणवत्ता को बरकरार रखना, गंगा में प्रवाहित होने वाले कचरे को रोकना और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत करवाना शामिल था। तब इस परियोजना पर 862.59 करोड़ रूपये खर्च हुए लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
साल 2009 में डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाई जिसके तहत गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया। 2010 में गवर्नमेंट क्लीन अप कैंपेन शुरु किया गया और कहा गया कि 2020 तक गंगा पूरी तरह साफ हो जाएगी। इस मद में भी सैकड़ों करोड़ रुपए ख़र्च होने का अनुमान लगाया गया।
इस बीच साल 2014 में एनडीए सत्ता में आ गई और तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने नमामि गंगे योजना की शुरूआत की। सरकार ने इसके लिए 2,037 करोड़ रूपये आवंटित किये। इस योजना का मकसद मैली और ज़हरीली गंगा की सफाई, और नदी को पुनर्जीवित करना शामिल था। वहीं 1700 करोड़ रूपये गंगा के किनारे बसे 1,674 गांवों को विकसित करने के लिए आवंटित किया गया। जुलाई 2014 से जून 2018 तक 3,867 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन गंगा अब तक मैली की मैली है। एनजीटी के आदेश पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने साल 2017 में गंगा के गुणवत्ता की जांच की। गंगा जिस-जिस रास्ते से गुजरती है, सीपीसीबी की टीम ने उस रास्ते के 80 जगहों पर पानी की जांच की और पाया कि 80 में से 36 जगहों पर बायो केमिकल ऑक्सीज़न डिमांड यानि बीओडी की मात्रा 3 mg/l से ज्यादा और 30 जगहों पर 2-3 mg/l के बीच था। यानी इन जगहों पर गंगा का पानी पीने या नहाने के लायक़ नहीं था। ठीक इसी तरह की जांच साल 2013 में भी हुई थी, तब 31 जगहों पर BOD 3 mg/l था और 24 जगहों पर 2-3 mg/l के बीच पाया गया था। यानि साल 2013 के मुकाबले गंगा पहले से ज़्यादा प्रदूषित और मैली हो गई है, जबकि गंगा की सफ़ाई के लिए पानी की तरह हज़ारों करोड़ बहाए गए। अब देखना ये है कि 33 सालों से गंगा की चल रही सफाई आखिर कब खत्म होगी?
इस बीच साल 2014 में एनडीए सत्ता में आ गई और तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने नमामि गंगे योजना की शुरूआत की। सरकार ने इसके लिए 2,037 करोड़ रूपये आवंटित किये। इस योजना का मकसद मैली और ज़हरीली गंगा की सफाई, और नदी को पुनर्जीवित करना शामिल था। वहीं 1700 करोड़ रूपये गंगा के किनारे बसे 1,674 गांवों को विकसित करने के लिए आवंटित किया गया। जुलाई 2014 से जून 2018 तक 3,867 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन गंगा अब तक मैली की मैली है। एनजीटी के आदेश पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने साल 2017 में गंगा के गुणवत्ता की जांच की। गंगा जिस-जिस रास्ते से गुजरती है, सीपीसीबी की टीम ने उस रास्ते के 80 जगहों पर पानी की जांच की और पाया कि 80 में से 36 जगहों पर बायो केमिकल ऑक्सीज़न डिमांड यानि बीओडी की मात्रा 3 mg/l से ज्यादा और 30 जगहों पर 2-3 mg/l के बीच था। यानी इन जगहों पर गंगा का पानी पीने या नहाने के लायक़ नहीं था। ठीक इसी तरह की जांच साल 2013 में भी हुई थी, तब 31 जगहों पर BOD 3 mg/l था और 24 जगहों पर 2-3 mg/l के बीच पाया गया था। यानि साल 2013 के मुकाबले गंगा पहले से ज़्यादा प्रदूषित और मैली हो गई है, जबकि गंगा की सफ़ाई के लिए पानी की तरह हज़ारों करोड़ बहाए गए। अब देखना ये है कि 33 सालों से गंगा की चल रही सफाई आखिर कब खत्म होगी?
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