सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, 63 साल बाद भी देश में युनिफॉर्म सिविल कोड लागू क्यों नहीं?
गोवा में संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से समान नागरिक संहिता का मुद्दा बहस में आ गया है. जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि गोवा भारतीय राज्य का चमचमाता उदाहरण है जहां धर्मों की परवाह किये बिना कुछ सीमित अधिकारों को छोड़कर समान नागरिक संहिता लागू है.
मसलन गोवा में जिनकी शादियां रजिस्टर्ड हैं, उन्हें बहुविवाह की इजाज़त नहीं है चाहे वे किसी भी धर्म के हों. हालांकि देश के बाक़ी हिस्सों में एक से ज़्यादा शादी का चलन मौजूद है. नैशनल फैमिल हेल्थ सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि इसका चलन हिंदू, मुसलमान, ईसाई और बौद्ध धर्मों में बरक़रार है.
31 पन्ने के अपने फ़ैसले में पीठ ने कहा कि हिंदू अधिनियमों को साल 1956 में संहिताबद्ध किया गया था लेकिन अदालत के प्रोत्साहन के बावजूद देश में सभी नागरिकों पर समान नागरिक संहिता लागू नहीं किया गया. वीडियो देखिये सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी इस मायने में अहम है क्योंकि समान नागरिक संहिता बीजेपी के मुख्य राजनीतिक अजेंडे में शामिल है. तीन तलाक़ बिल और अनुच्छेद 370 पर उन्हें पहले से ही बढ़त हासिल है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद बीजेपी अब अपने इस अजेंडे पर सक्रिय हो सकती है. वहीं समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि बीजेपी इसके बहाने सभी नागरिकों पर बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के लिए बनाए गए क़ानून थोपना चाहती है जबकि देश में अलग-अलग धर्म और मान्यताओं के लोग रहते हैं और संविधान में उन्हें तमाम अधिकार हासिल हैं.
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