यूपी में गौकशी से जुड़ा क़ानून और सख़्त हुआ लेकिन गौवंश की हालत बदतर हुई
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में गोवंश की सुरक्षा के लिए बने क़ानून में एक बार फिर संशोधन किया गया है. नए अध्यादेश की मंज़ूरी के बाद यूपी में गोवंश की हत्या करने पर दस साल की जेल और तीन से पांच लाख रूपये तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। वहीं शारीरिक नुकसान पहुंचाने पर सात साल की जेल और तीन लाख रूपये तक का जुर्माना देना होगा।
यही नहीं, ये सज़ा पूरी होने के बाद फिर हत्या या नुकसान पहुंचाने में संलिप्त पाए जाते हैं तो सज़ा और जुर्माना दोगुना हो जाएगा. यूपी में गो-हत्या निवारण क़ानून साल 1956 में लागू हुआ था. तबसे अबतक इस क़ानून में चार बार और नियामावली में दो बार संशोधन हो चुके हैं.
योगी सरकार में गायों की सुरक्षा और देखभाल एक बड़ा मुद्दा है. राज्य में तक़रीबन छह हज़ार स्थायी और अस्थायी गौशालाएं चल रही हैं जहां चार लाख जानवरों की देखभाल की क्षमता है. इनमें 92 गौशालाएं म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन चला रही हैं जिनके लिए करोडो़ं के बजट का प्रावधान है. इनके अलावा गौसेवा के नाम पर भी 500 से ज़्यादा गौशालाएं चल रही हैं. यूपी सरकार ने गौवंशियों की देखभाल के लिए 600 करोड़ रूपये के बजट का ऐलान भी कर चुकी है. साथ ही गायों की देखभाल करने वाले लोगों को हर महीने 900 रूपये दी जाने वाली योजना भी शुरू की गई. इन तमाम उपायों के बावजूद गौशालाओं में गायों का मरना बदस्तूर जारी है. राज्य में लाखों की तादाद में आवारा पशु हैं. चारे और पानी के अभाव में आए दिन इनकी गौशालाओं में मौत हो जाती है. 7 जून को यूपी के बांदा ज़िले में 15 गायों की अचानक मौत हो गई. अधिकारियों और डॉक्टरों का मानना है कि गायों की मौत ज़हरीला चारा खाने से हुआ है. माना जा रहा है कि किसानों ने अपनी फसल बचाने के लिए चारे में ज़हर मिला दिया था. इसी साल फरवरी में पशुपालन मंत्री लक्ष्मी नारायण सिंह ने सदन में बताया कि साल 2019 में अलग-अलग गौशालाओं में नौ हज़ार से ज़्यादा मवेशियों की मौत हुई. हैरानी की बात यह है कि इन मौतों में किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई और किसी भी अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई. साल 2019 में आई लाइव स्टॉक सेंसस की रिपोर्ट बताती है कि देश में मवेशियों की तादाद में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है जिनमें 35.9 फीसदी गोवंशीय हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि यूपी में साल 2018 में आवारा पशुओं की वजह से कम से कम 45 लोगों की सड़क हादसे में मौत हो गई. कहा जाता है कि जबतक गायें दूध देती हैं, तबतक इन्हें घरों में रखा जाता है. इसके बाद इन्हें गौशालाओं या सड़कों पर छोड़ दिया जाता है.
योगी सरकार में गायों की सुरक्षा और देखभाल एक बड़ा मुद्दा है. राज्य में तक़रीबन छह हज़ार स्थायी और अस्थायी गौशालाएं चल रही हैं जहां चार लाख जानवरों की देखभाल की क्षमता है. इनमें 92 गौशालाएं म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन चला रही हैं जिनके लिए करोडो़ं के बजट का प्रावधान है. इनके अलावा गौसेवा के नाम पर भी 500 से ज़्यादा गौशालाएं चल रही हैं. यूपी सरकार ने गौवंशियों की देखभाल के लिए 600 करोड़ रूपये के बजट का ऐलान भी कर चुकी है. साथ ही गायों की देखभाल करने वाले लोगों को हर महीने 900 रूपये दी जाने वाली योजना भी शुरू की गई. इन तमाम उपायों के बावजूद गौशालाओं में गायों का मरना बदस्तूर जारी है. राज्य में लाखों की तादाद में आवारा पशु हैं. चारे और पानी के अभाव में आए दिन इनकी गौशालाओं में मौत हो जाती है. 7 जून को यूपी के बांदा ज़िले में 15 गायों की अचानक मौत हो गई. अधिकारियों और डॉक्टरों का मानना है कि गायों की मौत ज़हरीला चारा खाने से हुआ है. माना जा रहा है कि किसानों ने अपनी फसल बचाने के लिए चारे में ज़हर मिला दिया था. इसी साल फरवरी में पशुपालन मंत्री लक्ष्मी नारायण सिंह ने सदन में बताया कि साल 2019 में अलग-अलग गौशालाओं में नौ हज़ार से ज़्यादा मवेशियों की मौत हुई. हैरानी की बात यह है कि इन मौतों में किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई और किसी भी अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई. साल 2019 में आई लाइव स्टॉक सेंसस की रिपोर्ट बताती है कि देश में मवेशियों की तादाद में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है जिनमें 35.9 फीसदी गोवंशीय हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि यूपी में साल 2018 में आवारा पशुओं की वजह से कम से कम 45 लोगों की सड़क हादसे में मौत हो गई. कहा जाता है कि जबतक गायें दूध देती हैं, तबतक इन्हें घरों में रखा जाता है. इसके बाद इन्हें गौशालाओं या सड़कों पर छोड़ दिया जाता है.
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