संविधान दिवस पर भूमाता ब्रिगेड सबरीमला में करेगी प्रवेश
आज संविधान दिवस है। संविधान द्वारा दिया हुआ जो ‘राइट टू प्रे’ का अधिकार है जो ईक्वालिटी का अधिकार है वो कहीं ना कहीं हमसे छीना जा रहा है। ये कहना है भूमाता ब्रिगेड की नेता तृप्ति देसाई का।
तृप्ति कहती हैं कि ‘’सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर कोई रोक नहीं लगाई है। आज संविधान दिवस के मौके पर सबरीमला के दर्शन के लिये हम जाने वाले हैं। क्योंकि वो हमारा अधिकार है। यहां कि पुलिस या सरकार हमें कोई भी नहीं रोक सकती। यदि वो रोकेंगे तो ये कोर्ट का अवमानना होगा। यदि वो हमें रोकेंगे तो उन्हें लिखित में ये देना चाहिये की अंदर प्रवेश नहीं कर सकते। ये कहीं ना कहीं महिलाओं की आवाज़ दबाने की कोशिश है।’’
केरल में स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर को प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां साधू-संतों की मान्यता है कि भगवान अय्यपा ब्रम्हचारी थे। जिसके कारण 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर में जाने पर पाबंदी लगी हुई है। 28 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर के कपाट के भीतर महिलाओं को प्रवेश की इजाज़त दे दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था। लेकिन एक खास वर्ग के साथ-साथ कुछ राजनीतिक दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया। कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ 50 से भी ज़्यादा पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई थीं। पुनर्विचार याचिकाओं पर पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों ने सुनवाई की। कोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले को सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। फिलहाल महिलाओं के प्रवेश पर तबतक कोई रोक नहीं लगा सकती जब तक सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच अपना फैसला नहीं सुना देती।
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— GoNewsIndiaHindi (@GoNewsHindi) November 26, 2019
केरल में स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर को प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां साधू-संतों की मान्यता है कि भगवान अय्यपा ब्रम्हचारी थे। जिसके कारण 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर में जाने पर पाबंदी लगी हुई है। 28 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर के कपाट के भीतर महिलाओं को प्रवेश की इजाज़त दे दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था। लेकिन एक खास वर्ग के साथ-साथ कुछ राजनीतिक दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया। कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ 50 से भी ज़्यादा पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई थीं। पुनर्विचार याचिकाओं पर पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों ने सुनवाई की। कोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले को सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। फिलहाल महिलाओं के प्रवेश पर तबतक कोई रोक नहीं लगा सकती जब तक सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच अपना फैसला नहीं सुना देती।
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