2018 में पानी के विवाद को लेकर देशभर में 92 लोगों की हत्या
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में हर घंटे कम से कम तीन लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों में मार दिया गया और कुल 29,017 लोग हत्याएं हुईं. यही नहीं, 2018 में 92 लोगों की ज़िंदगी पानी को लेकर हुए झगड़े की भेंट चढ़ गई.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरों ने साल 2018 में देशभर में हुई हत्याओं का ब्यौरा जारी किया है. नए आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में देशभर में 29 हज़ार 017 लोगों को अलग-अलग कारणों से क़त्ल कर दिया गया यानी हर दिन 80 लोगों को मौत के घाट उतारा गया. आसान शब्दों में कहें देश में हर घंटे कम से कम तीन लोगों की हत्या की गई.
सबसे ज़्यादा 3875 हत्याएं आपसी दुश्मनी की वजह से की गईं. वहीं प्रॉपर्टी की वजह से 3838, लालच की वजह से 2995, घरेलू कलह के चलते 2712, मामूली झगड़े की वजह से 1997, रुपयों के लेन-देन के चलते 984 लोगों को मार दिया गया. एनसीआरबी का आंकड़ा यह भी बताता है कि साल 2018 में पानी को लेकर हुए झगड़े में 92 लोगों की हत्या कर दी गई. और सबसे ज़्यादा 18 हत्याएं गुजरात में की गईं. आंकड़ों को और खंगाला जाये तो पता चलता है कि अवैध रिश्तों की वजह से 1658, प्रेम-प्रसंग के चलते 1581, दहेज के कारण 913, आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद के चलते 189, राजनीतिक कारणों के चलते 54, जातिवाद के चलते 36, हॉनर किलिंग्स के चलते 29 और साम्प्रदायिक कारणों से 24 लोगों की हत्याएं हुईं। इन आंकड़े से पता चलता है कि नक्सलवाद और आतंकवाद से ज़्यादा हत्याएं धर्म, जाति और लिंग के आधार पर की गईं लेकिन इनपर कभी बहस तक नहीं होती. ना ही इन्हें चुनावों में मुद्दा बनाया जाता है.
सबसे ज़्यादा 3875 हत्याएं आपसी दुश्मनी की वजह से की गईं. वहीं प्रॉपर्टी की वजह से 3838, लालच की वजह से 2995, घरेलू कलह के चलते 2712, मामूली झगड़े की वजह से 1997, रुपयों के लेन-देन के चलते 984 लोगों को मार दिया गया. एनसीआरबी का आंकड़ा यह भी बताता है कि साल 2018 में पानी को लेकर हुए झगड़े में 92 लोगों की हत्या कर दी गई. और सबसे ज़्यादा 18 हत्याएं गुजरात में की गईं. आंकड़ों को और खंगाला जाये तो पता चलता है कि अवैध रिश्तों की वजह से 1658, प्रेम-प्रसंग के चलते 1581, दहेज के कारण 913, आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद के चलते 189, राजनीतिक कारणों के चलते 54, जातिवाद के चलते 36, हॉनर किलिंग्स के चलते 29 और साम्प्रदायिक कारणों से 24 लोगों की हत्याएं हुईं। इन आंकड़े से पता चलता है कि नक्सलवाद और आतंकवाद से ज़्यादा हत्याएं धर्म, जाति और लिंग के आधार पर की गईं लेकिन इनपर कभी बहस तक नहीं होती. ना ही इन्हें चुनावों में मुद्दा बनाया जाता है.
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