नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र के गांव में प्रस्ताव पास
देशभर में एनआरसी लागू करने का ऐलान केंद्र सरकार ने फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाली देश आबादी इसकी अटकलों पर ही परेशान है. अब महाराष्ट्र की एक ग्राम सभा ने इस एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास किया है. 45 फ़ीसदी दलित आदिवासी आबादी वाले इस गांव के लोगों का साफ कहना है कि नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ जुटाना उनके लिए नामुमकिन है.
नागरिकता संशोधन क़ानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ अलग-अलग शहरों में जारी प्रदर्शनों के बीच महाराष्ट्र के एक गांव में इसके ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास कर दिया गया है. इसलाक नाम का यह गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में है. गांववालों के मुताबिक 26 जनवरी को ग्राम सभा की बैठक में यह प्रस्ताव पास हुआ है. अहमदनगर के ज़िलाधिकारी के ज़रिए इसकी इत्तेला केंद्र सरकार तक पहुंचा दी गई है. गांववालों ने साफ किया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वह गांव से असहयोग आंदोलन की शुरुआत करेंगे.
इसलाक गांव की कुल आबादी तक़रीबन दो हज़ार है. इस गांव में अल्पससंख्यक मुसलमान का एक भी परिवार नहीं रहता है लेकिन दलित और आदिवासी समुदाय की आबादी 45 फ़ीसदी है. गांववालों का कहना है कि दलित और आदिवासी समुदाय आज तक अपना जाति प्रमाण पत्र नहीं बनवा पाए जिसकी वजह से उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी नहीं मिलता. ऐसे लोग नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ कहां से लाएंगे. वीडियो देखिये गांववालों ने यह भी आशंका ज़ाहिर की है कि दस्तावेज़ बनवाने के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी शुरू हो जाएगा. ग्रामीणों ने कहा कि नागरिकता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है और सरकार को अपनी योजनाओं में बदलाव करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे असहयोग आंदोलन करने को मजबूर होंगे. दलित और आदिवासी की आबादी के अलावा इस गांव में ज़्यादातर छोटे-मझोले किसान हैं. ज़्यादातर का मानना है कि नागरिकता साबित करने के लिए जारी यह क़वायद उनके लिए मुश्किलें पैदा करने वाली है.
इसलाक गांव की कुल आबादी तक़रीबन दो हज़ार है. इस गांव में अल्पससंख्यक मुसलमान का एक भी परिवार नहीं रहता है लेकिन दलित और आदिवासी समुदाय की आबादी 45 फ़ीसदी है. गांववालों का कहना है कि दलित और आदिवासी समुदाय आज तक अपना जाति प्रमाण पत्र नहीं बनवा पाए जिसकी वजह से उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी नहीं मिलता. ऐसे लोग नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ कहां से लाएंगे. वीडियो देखिये गांववालों ने यह भी आशंका ज़ाहिर की है कि दस्तावेज़ बनवाने के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी शुरू हो जाएगा. ग्रामीणों ने कहा कि नागरिकता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है और सरकार को अपनी योजनाओं में बदलाव करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे असहयोग आंदोलन करने को मजबूर होंगे. दलित और आदिवासी की आबादी के अलावा इस गांव में ज़्यादातर छोटे-मझोले किसान हैं. ज़्यादातर का मानना है कि नागरिकता साबित करने के लिए जारी यह क़वायद उनके लिए मुश्किलें पैदा करने वाली है.
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