नौवीं-दसवीं में लाखों बच्चे छोड़ रहे है स्कूल, दिल्ली और असम में बुरा हाल
शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद हर साल लाखों बच्चे अपनी पढ़ाई और स्कूल बीच में ही छोड़ देते हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नए आंकड़े बताते हैं कि कई राज्यों में अब बच्चे दसवीं कक्षा तक आते आते पहले के मुकाबले ज्यादा स्कूल छोड़ रहे हैं।
मानव संसाधव विकास मंत्रालय के मुताबिक कई राज्यों में नौवीं और 10वीं क्लास के बच्चों के बीच स्कूल ड्रॉपआउट बढ़ रहा है. लोकसभा में पेश नए आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी शासित राज्य असम में 2016-17 में 27.6 फीसदी बच्चे नौवीं और दसवीं में पढ़ाई छोड़ रहे थे लेकिन 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 33.7 फीसदी हो गया. यानी राज्य में हर तीसरा बच्चा नौवीं और दसवीं कक्षा तक पहुंचते ही पढ़ाई और स्कूल छोड़ रहा है।
राजधानी दिल्ली के एजुकेशन मॉडल की चर्चा ज़ोरशोर से होती है और यहां भी स्कूल ड्रॉपआउट बढ़ गया है. दिल्ली में साल 2016-17 में 10.8 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी लेकिन 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 17.5 फीसदी हो गया। मध्य प्रदेश में साल 2017-18 में 24.2 फीसदी बच्चों ने 10वीं तक पहुंचते पहुंचते पढ़ाई छोड़ दी जबकि साल 2016-17 में यह आंकड़ा 23.8 फीसदी था। तमिलनाडु में साल 2016-17 में स्कूल ड्रॉपआउट 10 फीसदी था जो 2017-18 में बढ़कर 16.2 फीसदी हो गया। पंजाब में साल 2017-18 में 12.4 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया जबकि 2016-17 में यही आंकड़ा 8.6 फीसदी था। हरियाणा में भी हालात बिगड़ रहे हैं। साल 2017-18 में यहां स्कूल ड्रॉपआउट 13.4 फीसदी दर्ज किया गया जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 12.2 फीसदी था। ओडिशा में भी हालात में कोई ख़ास सुधार होता नहीं दिख रहा है. यहां साल 2017-18 में 28.3 फीसदी बच्चों ने नौवीं और दसवीं में पढ़ाई छोड़ दी जबकि 2016-17 में ये आंकड़ा 28.9 फीसदी था। बिहार में थोड़ा सुधार हुआ है लेकिन ड्रॉपआउट अभी भी बहुत ज़्यादा है. यहां साल 2016-17 में 39.7 फीसदी बच्चे नौवीं दसवीं में पढ़ाई छोड़ रहे थे जो साल 2017-18 में घटकर 32 फीसदी हो गया है. इसी तरह त्रिपुरा में स्कूल ड्रॉपआउट साल 2017-18 में 27.2 फीसदी दर्ज किया गया जो 2016-17 में 29.8 फीसदी था। छत्तीसगढ़ में 2017-18 में 21.4 फीसदी बच्चों ने स्कूलों से मुंह मोड़ लिया जिनकी संख्या 2016-17 में 24.2 फ़ीसदी थी. गुजरात में 2016-17 में 24.1 फीसदी बच्चो ने पढ़ाई छोड़ी थी लेकिन 2017-18 में यह आंकड़ा घटकर 20.6 फीसदी हो गया. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक गरीबी, शारीरिक अक्षमता, काम-काज और शिक्षा का महत्त्व न समझना स्कूल ड्रॉपआउट की बड़ी वजह हैं. वीडियो देखिये शिक्षा का अधिकार क़ानून डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार के दूसरे कार्यकाल में लागू हुआ था. इस क़ानून में छह से 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है. इस क़ानून के तहत नए स्कूल खुलवाना, बच्चों की मुफ्त वर्दी, किताबें, मिड डे मील, यात्रा भत्ता और अन्य सुविधाएं सरकार देती है. मकसद यही था कि कोई बच्चा शिक्षा से महरूम ना रह जाये लेकिन लोकसभा में पेश नए आंकड़े केंद्र सरकार के सर्व शिक्षा अभियान की कोशिशों को बड़ा धक्का पहुंचाने वाले हैं.
राजधानी दिल्ली के एजुकेशन मॉडल की चर्चा ज़ोरशोर से होती है और यहां भी स्कूल ड्रॉपआउट बढ़ गया है. दिल्ली में साल 2016-17 में 10.8 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी लेकिन 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 17.5 फीसदी हो गया। मध्य प्रदेश में साल 2017-18 में 24.2 फीसदी बच्चों ने 10वीं तक पहुंचते पहुंचते पढ़ाई छोड़ दी जबकि साल 2016-17 में यह आंकड़ा 23.8 फीसदी था। तमिलनाडु में साल 2016-17 में स्कूल ड्रॉपआउट 10 फीसदी था जो 2017-18 में बढ़कर 16.2 फीसदी हो गया। पंजाब में साल 2017-18 में 12.4 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया जबकि 2016-17 में यही आंकड़ा 8.6 फीसदी था। हरियाणा में भी हालात बिगड़ रहे हैं। साल 2017-18 में यहां स्कूल ड्रॉपआउट 13.4 फीसदी दर्ज किया गया जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 12.2 फीसदी था। ओडिशा में भी हालात में कोई ख़ास सुधार होता नहीं दिख रहा है. यहां साल 2017-18 में 28.3 फीसदी बच्चों ने नौवीं और दसवीं में पढ़ाई छोड़ दी जबकि 2016-17 में ये आंकड़ा 28.9 फीसदी था। बिहार में थोड़ा सुधार हुआ है लेकिन ड्रॉपआउट अभी भी बहुत ज़्यादा है. यहां साल 2016-17 में 39.7 फीसदी बच्चे नौवीं दसवीं में पढ़ाई छोड़ रहे थे जो साल 2017-18 में घटकर 32 फीसदी हो गया है. इसी तरह त्रिपुरा में स्कूल ड्रॉपआउट साल 2017-18 में 27.2 फीसदी दर्ज किया गया जो 2016-17 में 29.8 फीसदी था। छत्तीसगढ़ में 2017-18 में 21.4 फीसदी बच्चों ने स्कूलों से मुंह मोड़ लिया जिनकी संख्या 2016-17 में 24.2 फ़ीसदी थी. गुजरात में 2016-17 में 24.1 फीसदी बच्चो ने पढ़ाई छोड़ी थी लेकिन 2017-18 में यह आंकड़ा घटकर 20.6 फीसदी हो गया. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक गरीबी, शारीरिक अक्षमता, काम-काज और शिक्षा का महत्त्व न समझना स्कूल ड्रॉपआउट की बड़ी वजह हैं. वीडियो देखिये शिक्षा का अधिकार क़ानून डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार के दूसरे कार्यकाल में लागू हुआ था. इस क़ानून में छह से 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है. इस क़ानून के तहत नए स्कूल खुलवाना, बच्चों की मुफ्त वर्दी, किताबें, मिड डे मील, यात्रा भत्ता और अन्य सुविधाएं सरकार देती है. मकसद यही था कि कोई बच्चा शिक्षा से महरूम ना रह जाये लेकिन लोकसभा में पेश नए आंकड़े केंद्र सरकार के सर्व शिक्षा अभियान की कोशिशों को बड़ा धक्का पहुंचाने वाले हैं.
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