काबुल से भागकर आए सिख शरणार्थियों ने बताई अपनी कहानी, C(A)B के आने से जश्न में डूबे

by Shahnawaz Malik 4 years ago Views 2414

C(A)B 2019: AMIDST PROTEST HOPE FLOATS FOR SIKH RE
भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न कोई अनोखी बात नहीं है. जान माल की सुरक्षा में अल्पसंख्यक समुदाय एक देश से दूसरे देश में भटकने को मजबूर हैं. 2012 में अफ़ग़ानिस्तान से भागकर पंजाब आए शम्मी सिंह, अमरीक सिंह जैसे सिख उन्हीं लोगों में से हैं जो अब वापस नहीं लौटना चाहते. शम्मी केंद्र सरकार के नए फ़ैसले से ख़ुश हैं और नागरिकता के साथ-साथ सरकार से घर कारोबार की मांग कर रहे हैं.

क़ाबुल से लुधियाना आने वाले सिख शरणार्थियों की तादाद तक़रीबन 25 है जो अब वापस लौटकर नहीं जाना चाहते. रंजीत सिंह कहते हैं कि अब क़ाबुल में सिखों की ज़्यादा आबादी नहीं बची है. गुरुद्वारों और धार्मिक स्थलों की देखरेख कर रहे सिख ही वहां बचे हुए हैं जो नागरिकता क़ानून बनने के बाद भारत आने के लिए तैयार हैं.


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इन शरणार्थियों के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में कभी सिखों की आबादी डेढ़ लाख से ज़्यादा थी और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं था. कारोबार का एक बड़ा हिस्सा सिखों और हिंदू समुदाय के पास था. क़ाबुल में होने वाली बैसाखी में बाक़ी शहरों के लोग भी जुटते थे. तब बैसाखी में मुसलमान शिरकत करते थे और ईद में सिख और हिंदू मुसलमानों के घर जाया करते थे.

हालांकि 2008 से क़ाबुल समेत तमाम शहरों में हालात बदलने लगे. चरमपंथी गुटों ने सिखों और हिंदू समुदाय को काफिर कहना शुरू कर दिया. सिख और हिंदू रीति से अंतिम संस्कार करने पर पाबंदी लगाई जाने लगी. तभी से हज़ारों धार्मिक अल्पसंख्यकों का पलायन जारी है जो अब भारत आने के लिए तैयार हैं.

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