तंगहाली झेल रहे लाखों मज़दूर महानगरों में वापस लौटने को तैयार: रिपोर्ट
मार्च के आख़िरी हफ़्ते में अचानक लगाए गए लॉकडाउन से लाखों मज़दूर महानगरों से पलायन के लिए मजबूर हुए थे. लेकिन चार महीने गुज़रने के बाद इन मज़दूरों के लिए अपने गांवों में रहना मुश्किल हो गया है. कई सामाजिक संगठनों की एक मिली-जुली रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 29 फ़ीसदी प्रवासी मज़दूर महानगरों को वापस लौट चुके हैं और तकरीबन 45 फ़ीसदी मज़दूर वापस लौटने की तैयारी में हैं. हालांकि पलायन के दौरान मज़दूरों ने कहा था कि वे अपने गांव में भूख से मरना पसंद करेंगे लेकिन रोज़ी रोटी के लिए शहरों का रुख़ नहीं करेंगे.
यह सर्वेक्षण 24 जून से 8 जुलाई के बीच 11 राज्यों के 48 जिलों में किया गया है. इस दौरान 4,835 परिवारों से बातचीत की गई. सर्वे बताता है कि गांव लौटने वाले 80 फीसदी मज़दूर दिहाड़ी से अपना पेट पाल रहे थे जबकि क़रीब एक चौथाई मज़दूरों को काम नहीं मिल सका. वे अभी भी गांवों में काम की तलाश कर रहे हैं और बेरोजगार हैं.
यह सर्वे बताता है कि गांव में हालात इतने ख़राब हैं और ग़रीबी की मार इस क़दर पड़ रही है कि हर चार में से एक परिवार अपने बच्चे को स्कूल से बाहर निकालने की सोच रहे हैं. ऐसे लोग तकरीबन 24 फ़ीसदी हैं. इसी तरह 43 फ़ीसदी परिवार ने अपनी ख़ुराक़ में कटौती कर दी है, जबकि 55 फ़ीसदी परिवारों ने खाने में कई चीज़ों को कम कर दिया है. हालांकि लॉकडाउन की अवधि की तुलना में अब भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ है. गरीबी का हाल ऐसा है कि लगभग 6 प्रतिशत परिवारों ने ज़ेवर समेत दूसरे कीमती सामान गिरवी रख दिए जबिक 15 प्रतिशत परिवारों ने अपनी तंगी दूर करने के लिए अपने जानवरों को बेच दिया. इसी तरह 35 प्रतिशत परिवारों ने घर में होने वाला समारोह टाल दिया है जबकि 13 फ़ीसदी लोगों ने मेहमानों की संख्या कम कर दी है. यह सर्वे 'How Hinterland is Unlocking' के नाम से किया गया है. इसमें आग़ा खां रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, एक्शन फॉर सोशल एडवांसमेंट, ग्रामीण सहारा, प्रदान, साथी-यूपी समेत कई संगठनों ने मिलकर किया है.
यह सर्वे बताता है कि गांव में हालात इतने ख़राब हैं और ग़रीबी की मार इस क़दर पड़ रही है कि हर चार में से एक परिवार अपने बच्चे को स्कूल से बाहर निकालने की सोच रहे हैं. ऐसे लोग तकरीबन 24 फ़ीसदी हैं. इसी तरह 43 फ़ीसदी परिवार ने अपनी ख़ुराक़ में कटौती कर दी है, जबकि 55 फ़ीसदी परिवारों ने खाने में कई चीज़ों को कम कर दिया है. हालांकि लॉकडाउन की अवधि की तुलना में अब भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ है. गरीबी का हाल ऐसा है कि लगभग 6 प्रतिशत परिवारों ने ज़ेवर समेत दूसरे कीमती सामान गिरवी रख दिए जबिक 15 प्रतिशत परिवारों ने अपनी तंगी दूर करने के लिए अपने जानवरों को बेच दिया. इसी तरह 35 प्रतिशत परिवारों ने घर में होने वाला समारोह टाल दिया है जबकि 13 फ़ीसदी लोगों ने मेहमानों की संख्या कम कर दी है. यह सर्वे 'How Hinterland is Unlocking' के नाम से किया गया है. इसमें आग़ा खां रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, एक्शन फॉर सोशल एडवांसमेंट, ग्रामीण सहारा, प्रदान, साथी-यूपी समेत कई संगठनों ने मिलकर किया है.
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